Monday, 15 April 2019

इंजीनियरिंग के बाद किसी फंक्शन में नहीं जाता क्योंकि मेरे पास जॉब नहीं है

इंजीनियरिंग के बाद किसी फंक्शन में नहीं जाता क्योंकि मेरे पास जॉब नहीं है

सभी इंजीनियर दोस्तों को समर्पित


मैंने बहुत मेहनत की. सपनों और उम्मीद से भरे 22 साल पूरे कर लिए हैं. हमारे मां-बाप ने हमारी पढ़ाई पर लाखों खर्च किए हैं. लेकिन इसका क्या फायदा? यहां तक कि चार साल मेहनत करने के बाद भी हम अब बेरोजगार हैं. मेरे कॉलेज ने किसी कंपनी को कैंपस सलेक्शन के लिए बुलाया तक नहीं. मेरे सीनियर्स जॉब के लिए नौकरी डॉट कॉम पर अकाउंट बनाने की सलाह देते हैं. लेकिन कोई फायदा नहीं.

मुझे सिर्फ बीपीओ और टेक सपोर्ट्स के अपडेट मिलते हैं. बीपीओ में काम करने के लिए स्कूल की पढ़ाई काफी होती है. तब सीनियर्स मुझे खुद से जॉब ढूंढ लेने के लिए कहते हैं. मैंने वो भी किया. लेकिन आजकल की कंपनियां फ्रेशर्स को नहीं रखना चाहती हैं. वो सिर्फ अनुभवी लोगों को रखना चाहती हैं. कंपनियां फ्रेशर्स को तभी रखती हैं, जब उनके पास कोई अच्छा रेफरेंस हो. लेकिन मेरे पास कोई रेफरेंस नहीं है. यहीं पर मैं हार गया.


कुछ लोगों ने मुझे सलाह दी कि कुछ कंपनियों तक पहुंच बनाओ. वहां के वॉचमैन को अपनी सी.वी. दे दो. मैंने ये भी किया. लेकिन वॉचमैन ने मुझसे कहा कि हमारी कंपनी में सिर्फ आईटीआई और डिप्लोमा के लिए वैकेंसी है. इंजीनियरों के लिए नहीं. मैं फिर से हार गया.

कुछ लोग मुझे सलाह देते हैं कि कंसल्टेंसी ज्वॉइन कर लो. मैंने ये भी किया. मुझे इसमें ही उम्मीद की किरण दिखी. उन्होंने मेरे लिए इंटरव्यू अरेंज कराया. जब मैं गया तो एचआर का पहला सवाल था कि सुबह से शाम तक तुम क्या करते हो? मैंने कहा जॉब ढूंढता हूं. वो मुझे पर हंसा और सलाह दी कि कोई कोर्स ज्वॉइन कर लो. ठीक है. मैंने ये भी किया.


अपने सपनों को पूरा करने के लिए मैंने पैसे भी खर्च किए. कंसल्टेंसी ने फिर से मेरे लिए एक इंटरव्यू अरेंज किया. मैं इंटरव्यू देने गया. ये एक छोटी सी कंपनी थी. मैं तीसरे राउंड के लिए सलेक्ट हो गया. एचआर ने मुझे 2 साल के बॉन्ड के साथ महीने का 8-10 हजार ऑफर किया. ऐसे महानगर में जहां मुझे अपनी बेसिक जरूरतों को पूरा करने के लिए 10 हजार चाहिए होता है. क्या आप इस तरह का ऑफर स्वीकार करेंगे? मुझे लगता है, नहीं!

मेरा दोस्त जिसे मुझसे कम नंबर मिले थे. वो अभी एक मल्टी नेशनल कंपनी में 25 हजार पर काम कर रहा है. क्योंकि उसके पास रेफरेंस था. सर हम पढ़ाई पर लाखों का खर्च और इतनी मेहनत 8 हजार कमाने के लिए नहीं करते हैं. हम परिवार के किसी भी फंक्शन में शामिल नहीं होते हैं. इसलिए नहीं कि हमें घमंड है, बल्कि इसलिए की हमारे पास जॉब नहीं है. रिश्तेदारों का भी पहला सवाल होता है. अभी क्या कर रहे हो? मैं इस सवाल का जवाब देने में शर्मिंदगी महसूस करता हूं.


जब भी मैं अपने मां-बाप को कॉल करता हूं. उनका पहला सवाल होता है कि तुम्हे जॉब मिली. मैं फिर से शर्मिंदा हो जाता हूं. मैं अपने पापा से खाने और रहने का खर्च मांगता हूं. ये मेरी ज़िंदगी का सबसे खराब पल होता है. ऐसा करते समय मैं खुद को शर्मिंदा महसूस करता हूं.

सर एक छोटी सी रिक्वेस्ट है. अगर इंडिया में लोगों को नौकरी देने की क्षमता नहीं, फिर नए कॉलेजों को लाइसेंस देना बंद करें. हर साल मेरे राज्य में 50 नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाते हैं. क्या जरूरत है इसकी. हर साल सिर्फ मेरे राज्य में लगभग 2 लाख छात्र इंजीनियरिंग में दाखिला लेते हैं.


ऐसा क्यों सर. मैं सारी उम्मीद खो चुका हूं. क्योंकि मैंने बहुत बुरा समय देखा है. लेकिन इंजीनियर बनकर मुझे गर्व है. पर मुझे अब भी लगता है, मैं ज़िंदगी में कुछ अच्छा करूंगा. किसी कोने मुझे खुद पर भरोसा है. मुझे पता है मैंने अपने हिस्से का काम हमेशा ईमानदारी से किया. क्या हुआ अगर इस सिस्टम में इतनी गड़बड़ियां हैं. हमारी गलती तो ये थी न कि हमने ऐसे कॉलेज से पढ़ाई की. पर ये हमारा गुनाह तो नहीं था. इस फील्ड में आने से पहले तक तो मुझे यहां की बारीकियां पता नहीं थीं. मैं तो सब अच्छा होने की उम्मीद से ही आया था. ये सिर्फ मेरी स्टोरी नहीं है, बल्कि उन सारे इंजीनियरों की कहानी हैं. जिनके पास पैसे और रेफरेंस नहीं है.

आशीष पांडे ने इंजीनयरिंग कॉलेजों के गढ़ भोपाल से इंजीनियरिंग की थी. अभी गुड़गांव में डेरा है. उन्होंने हमें ये लेख लिख भेजा. आपके पास भी कोई किस्सा हो कुछ शेयर करना हो तो बांटिए. भेजिए akashraghuwanshi93@gmail.com


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