भारत का पश्चिमी तटीय मैदान
भारत के पश्चिमी तटीय मैदान का विस्तार गुजरात तट से लेकर केरल के तट तक है| इस मैदान को चार भागों में विभाजित किया जाता है-
• गुजरात का तटीय मैदान - गुजरात का तटीय मैदान (इसे कच्छ और काठियावाड़/सौराष्ट्र का तटीय मैदान में बांटा जाता है|)
• कोंकण का तटीय मैदान - महाराष्ट्र व गोवा का तटीय मैदान
• कन्नड़ का तटीय मैदान - कर्नाटक का तटीय मैदान (इसे कनारा तटीय मैदान भी कहा जाता है|)
• मालाबार का तटीय मैदान - केरल का तटीय मैदान
गुजरात का तटीय मैदान का कच्छ का मैदान शुष्क एवं अर्द्धशुष्क रेतीला मैदान है, लेकिन काठियाबाड़ तटीय मैदान (जिसे सौराष्ट्र का तटीय मैदान भी कहा जाता है) से होकर माही, साबरमती, नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं। कोंकण के तटीय मैदान पर साल, सागौन आदि के वनों की अधिकता है। कन्नड़ के तटीय मैदान का निर्माण प्राचीन रूपांतरित चट्टानों से हुआ है, जिस पर गरम मसालों, सुपारी, केला, आम, नारियल, आदि की कृषि की जाती है। मालाबार के तटीय मैदान में कयाल (लैगून) पाये जाते हैं, जिनका प्रयोग मछ्ली पकड़ने, अंतर्देशीय जल परिवहन के साथ-साथ पर्यटन स्थलों के रूप में किया जाता है| केरल की पुन्नामदा कयाल में प्रतिवर्ष नेहरू ट्रॉफी नौकायन दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है|
भारत का पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात में सबसे चौड़ा है और दक्षिण की ओर जाने पर इसकी चौड़ाई कम होती जाती है, लेकिन केरल में यह फिर चौड़ा हो जाता है| अतः मध्य भाग में ये सबसे कम चौड़ा है| इस मैदान की औसत चौड़ाई 64 किमी. है। इस मैदान का ढाल पश्चिम की ओर है, जिस पर छोटी-छोटी लेकिन तीव्रगामी नदियाँ प्रवाहित होती है। इस मैदान से होकर बहने वाली नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती हैं|
ये मैदान वास्तव में पश्चिमी घाट के पश्चिम में उसके समानान्तर संकरी पट्टी के रूप में विस्तृत निमज्जित तटीय मैदान (Submerged Coastal Plain) हैं|निमज्जन के कारण यह मैदान भारत के समुद्री पत्तनों के निर्माण के लिए आदर्श प्राकृतिक परिस्थितियाँ उपलब्ध कराता है| कांडला, मुंबई, न्हावा-शेवा, मोर्मुगोआ, मंगलुरु, कोच्चि आदि पश्चिमी तटीय मैदान पर स्थित प्रमुख बंदरगाह/समुद्री पत्तन हैं|
No comments:
Post a Comment