ब्रह्मांड के विषय में बदलता दृष्टिकोण व कृत्रिम उपग्रह
2000 वर्ष पहले, यूनानी खगोलविदों ने सोचा था कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में है और चंद्रमा, सूर्य व तारे इसकी परिक्रमा करते हैं।
छठी शताब्दी में आर्यभट्ट ने बताया था कि हम जिन अन्तरिक्ष निकायों को घूर्णन करता हुआ महसूस करते हैं उनका घूर्णन पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूर्णन की वजह से होता है। आर्यभट्ट ने ही इस बात की खोज की थी कि पृथ्वी के घूर्णन की वजह से ही दिन और रात होते हैं। उन्होंने इस बात को भी सिद्ध किया था कि चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण क्रमशः पृथ्वी और चंद्रमा की छाया की वजह से होता है।
15वीं सदी में, पोलैंड के वैज्ञानिक निकोलस कॉपरनिकस ने बताया कि सूर्य सौरमंडल के केंद्र में है और ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं। इस तरह सूर्य ब्रह्मांड का केंद्र बन गया है।
16वीं सदी में, जोहानेस केप्लर ने ग्रहीय कक्षा के नियमों की खोज की, लेकिन सूर्य तब भी ब्रह्मांड के केंद्र में बना रहा। 20वीं सदी की शुरुआत में जाकर हमारी अपनी आकाशगंगा की तस्वीर स्पष्ट हुई और पाया गया कि सूर्य आकाशगंगा के एक कोने में स्थित है।
कृत्रिम उपग्रह
मानव-निर्मित उपग्रह हैं, जो पृथ्वी की चारों तरफ घूमते रहते हैं, को ‘कृत्रिम उपग्रह’ कहते हैं। इन्हें पृथ्वी से प्रक्षेपित किया जाता है। चंद्रमा के मुकाबले ये पृथ्वी के बहुत निकट स्थित होते हैं। कृत्रिम उपग्रहों की डिजाइनिंग और निर्माण प्रौद्योगिकी को वैज्ञानिकों ने करीब 50 वर्ष या इससे थोड़ा पहले विकसित किया था| उन्होंने बहुत शक्तिशाली प्रक्षेपण यान या रॉकेट्स भी विकसित किए जो इन उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने और कक्षा में स्थापित करने में सक्षम होते हैं। फिलहाल दुनिया के सिर्फ कुछ देशों के पास कृत्रिम उपग्रह विकसित करने और उसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने की प्रौद्योगिकी है। भारत भी उन देशों में शामिल है और इसने कई कृत्रिम उपग्रहों को निर्मित कर प्रक्षेपित किया है। भारत का पहला प्रायोगिक कृत्रिम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ था, जिसे अप्रैल 1975 में प्रक्षेपित किया गया था।
कृत्रिम उपग्रहों का प्रयोग कई तरह के कार्यों में किया जाता है। इनका प्रयोग मौसम के पूर्वानुमान में भी किया जाता है। यह हमें मॉनसून के आगमन के बारे में सचेत कर सकते हैं और बाढ़, चक्रवात, जंगल की आग जैसी संभावित आपदाओं के प्रति भी हमें चेतावनी दे सकते हैं। कृत्रिम उपग्रहों का प्रयोग इंटरनेट, दूरसंचार और रिमोट सेंसिंग/सुदूर संवेदन के लिए भी होता है। रिमोट सेंसिंग (दूर बैठकर जानकारी प्राप्त करने की तकनीक) का प्रयोग मौसम, कृषि, भूमि और महासागर की विशेषताओं के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए किया जाता है। इन प्रायोगिक कार्यों के अलावा कृत्रिम उपग्रहों का प्रयोग वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए भी किया जाता है, उदाहरण के लिए ये खगोलीय पर्यवेक्षण में मदद करने वाले उपकरण अपने साथ अंतरिक्ष में ले जा सकते हैं।
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