Wednesday, 6 September 2017

राष्ट्रीय आन्दोलन 1905-1947 ई.

उग्र राष्ट्रवाद के उदय के कारण

अंग्रेजी राज्य के सही स्वरूप की पहचान- भारतीयों द्वारा यह महसूस किया जाना कि ब्रिटिश शासन का स्वरूप शोषणात्मक है तथा वह भारत की आर्थिक प्रगति के स्थान पर उपलब्ध संसाधनों का शोषण करने में लगी हुई है।भारतीयों के आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान में वृद्धि।शिक्षा में विकास का प्रभाव- इसके फलस्वरूप भारतीयों में जागृति आयी तथा बेरोजगारी बढ़ी। बेरोजगारी में वृद्धि के लिये भारतीयों ने अंग्रेजों को उत्तरदायी ठहराया।अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव- तत्कालीन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय घटनाओं ने यूरोपीय अजेयता के मिथक को तोड़ दिया। इन घटनाओं में प्रमुख हैं-एक छोटे से देश जापान का आर्थिक महाशक्ति के रूप में अभ्युदयइथियोपिआ (अबीसीनिया) की इटली पर विजयब्रिटेन की सेनाओं को गंभीर क्षति पहुंचाने वाला बोअर का युद्ध (1899-1902)जापान की रूस पर विजय (1905)विश्व के अनेक देशों के राष्ट्रवादी क्रांतिकारी आंदोलनबढ़ते हुये पश्चिमीकरण के विरुद्ध प्रतिक्रिया।उदारवादियों की उपलब्धियों से असंतोषलार्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीतियां, जैसे- कलकत्ता कार्पोरेशन अधिनियम (1899), कार्यालय गोपनीयता अधिनियम (1904), भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (1904) एवं बंगाल का विभाजन (1905)।जुझारू राष्ट्रवादी विचारधारा।एक प्रशिक्षित नेतृत्व।

उग्रवादियों के सिद्धांत

ब्रिटिश शासन से घृणा।जनसमूह की शक्ति एवं ऊर्जा में विश्वासस्वराज्य मुख्य लक्ष्यप्रत्यक्ष राजनीतिक भागीदारी एवं आत्म-त्याग की भावना में विश्वासभारतीय संस्कृति एवं मूल्यों में विश्वासभारतीय समारोहों के आयोजन के पक्षधरप्रेस तथा शिक्षा में विकास के पक्षधर

स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन

बंगाल विभाजन, (जो कि 1903 में सार्वजनिक हुआ तथा 1905 में लागू किया गया) के विरोध में प्रारम्भ हुआ। बंगाल विभाजन के पीछे सरकार की वास्तविक मंशा बंगाल को दुर्बल करना था क्योंकि उस समय बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का प्रमुख केंद्र था। बंगाल विभाजन के लिये सरकार ने तर्क दिया कि बंगाल की विशाल आबादी के कारण प्रशासन का सुचारु रुप से संचालन कठिन हो गया है। यद्यपि कुछ सीमा तक सरकार का यह तर्क सही था किन्तु उसकी वास्तविक मंशा कुछ और ही थी। विभाजन के फलस्वरूप सरकार ने बंगाल को दो भागों में विभक्त कर दिया। पहले भाग में पूर्वी बंगाल तथा असम और दूसरे भाग में शेष बंगाल को रखा गया।

उदारवादियों का बंगाल विभाजन विरोधी अभियान (1903-1905)

उदारवादी, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, के.के. मिश्रा एवं पृथ्वीशचन्द्र राय प्रमुख थे। उदारवादियों ने विरोध स्वरूप जो तरीके अपनाये वे थे-जनसभाओं का आयोजन, याचिकायें, संशोधन प्रस्ताव तथा पम्फलेट्स एवं समाचार पत्रों के माध्यम से विरोध।

बंगाल विभाजन के संबंध में उग्रराष्ट्रवादियों की गतिविधियां

बंगाल विभाजन के विरोध में सक्रिय भूमिका निभाने वाले प्रमुख उग्रवादी नेता थे- बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, लाला लाजपत राय एवं अरविन्द घोष।

विरोध के तरीके

विदेशी वस्तुओं एवं विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, जनसभाओं या आत्म-शक्ति की भावना पर बल, स्वदेशी या राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम, स्वदेशी या भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन, भारतीय संगीत एवं भारतीय चित्रकला को नया आयाम, विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान को प्रोत्साहन, शिक्षा संस्थाओं, स्थानीय निकायों, सरकारी सेवाओं इत्यादि का बहिष्कार।

विरोध आन्दोलन की बागडोर उग्रवादियों द्वारा अपने हाथ में लेने का कारण

उदारवादियों के नेतृत्व में आन्दोलन का विशेष परिणाम न निकलना।उदारवादियों के संवैधानिक तरीकों से उग्रवादी असहमत थे।विरोध अभियान को असफल बनाने हेतु सरकार की दमनकारी नीतियां।

आंदोलन का सामाजिक आधार

छात्र, महिलायें, जमींदारों का एक वर्ग तथा शहरी निम्न वर्ग एवं साधारण वर्ग। शहरों एवं कस्बों के मध्य वर्ग ने पहली बार किसी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी, जबकि मुसलमान सामान्यतया आंदोलन से पृथक रहे।

बंगाल विभाजन का रद्द होना

क्रांतिकारी आतंकवाद के उभरने के भय से 1911 में सरकार ने बंगाल विभाजन रद्द कर दिया।

स्वदेशी आन्दोलन की असफलता के कारण

सरकार की कठोर दमनात्मक कार्यवाइयां।प्रभावी संगठन का अभाव एवं अनुशासनात्मक दिशाहीनता।सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी से आंदोलन का नेतृत्वविहीन होना।राष्ट्रवादी नेताओं की आपसी कलह।संकुचित सामाजिक जनाधार।

आंदोलन की मुख्य उपलब्धियां

‘व्यापक सामाजिक प्रभाव’ क्योंकि समाज के अब तक के निष्क्रिय वर्ग ने बड़ी सक्रियता के साथ आंदोलन में भाग लिया, आगे के आंदोलनों को इस आंदोलन ने प्रभावी दिशा एवं उत्साह दिया, सांस्कृतिक समृद्धि में बढ़ोत्तरी, विज्ञान एवं साहित्य को बढ़ावा, भारतीय साहसिक राजनीतिक भागीदारी एवं राजनैतिक एकता की महत्ता से परिचित हुये। भारतीयों के समक्ष उपनिवेशवादी विचारों और संस्थाओं की वास्तविक मंशा उजागर हो गयी।

कांग्रेस का सूरत विभाजन (1907): प्रमुख कारण

उदारवारीः स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को केवल बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे तथा वे केवल विदेशी कपड़ों और शराब का बहिष्कार किये जाने के पक्षधर थे।

उग्रवादीः स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को न केवल पूरे बंगाल अपितु देश के अन्य भागों में भी चलाये जाने तथा इसमें विदेशी कपड़ों एवं शराब के साथ सभी सरकारी नगर निकायों इत्यादि के बहिष्कार का मुद्दा भी सम्मिलित किये जाने की मांग कर रहे थे।

स्वदेशी आंदोलन के दमन हेतु सरकार द्वारा किये गये प्रयास

राजद्रोही सभा अधिनियम, 1907फौजदारी कानून (संशोधित) अधिनियम, 1908भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1908विध्वंसक पदार्थ अधिनियम, 1908भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910

क्रांतिकारी आतंकवाद

उदय के कारण

उदारवादियों की असफलता के पश्चात् युवा राष्ट्रवादियों का मोह भंग होना तथा आंदोलन के नेताओं का युवा शक्ति एवं ऊर्जा के सही प्रयोग में असफल रहना। सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण शांतिपूर्ण आंदोलन की संभावना का समाप्त हो जाना। युवा राष्ट्रवादियों में अतिशीघ्र परिणाम प्राप्त करने की अभिलाषा तथा युवा राष्ट्रवादियों का प्रभावी संगठन बनाने में राष्ट्रवादी नेताओं की असफलता।

मुख्य कार्यक्रम

अलोकप्रिय सरकारी अधिकारियों की हत्या करना, हिंसात्मक गतिविधियों द्वारा शासकों को आतंकित करना तथा भारतीयों के मनोमस्तिष्क से अंग्रेजों के शक्तिशाली एवं अजेय होने का भय दूर करना, रूसी निहिलिस्टों एवं आयरलैंड के आतंकवादियों की तरह व्यक्तिगत रूप से विध्वंसक गतिविधियां संपन्न करना, सरकार विरोधी लोगों के सहयोह से सैन्य षड्तंत्र करना एवं डकैती एवं लूटपाट करके धन एकत्रित करना।

प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व क्रांतिकारी गतिविधियां

बंगाल

1902- मिदनापुर एवं कलकत्ता में प्रथम क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना (अनुशीलन समिति)।1906- युगांतर नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ।1905-1906- तक क्रांतिकारी आतंकवाद का समर्थन एवं प्रचार करने वाले अनेक समाचार-पत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ, जिनमें संध्या सबसे प्रमुख है।1907- युगांतर समूह के सदस्यों द्वारा बंगाल के अलोकप्रिय लेफ्टिनेंट गवर्नर फुलर की हत्या का असफल प्रयास।1908-खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के न्यायाधीश श्री किंग्जफोर्ड की हत्या का प्रयास।अरविंद घोष, बरीन्द्र कुमार घोष एवं अन्य पर ‘अलीपुर षड़यंत्र कांड का अभियोग चलाया गया।1908- पुलिन दास के नेतृत्व में ढाका अनुशीलन समिति के सदस्यों द्वारा बारा में डकैती।1909- अलीपुर षड़यंत्र केस से संबंधित सरकारी प्रासीक्यूटर की कलकत्ता में हत्या।1912- रासविहारी बोस तथा सचिन सान्याल ने भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग के काफिले पर दिल्ली के चांदनी चौक में बम फेंका। तेरह लोग गिरफ्तार, ‘दिल्ली षड़यंत्र केस’ के तहत मुकदमा चलाया गया। ध्या तथा युगांतरनामक समाचार पत्रों द्वारा क्रांतिकारी आतंकवादियों की उक्त गतिविधियों को पूर्ण समर्थन प्रदान किया गया।

महाराष्ट्र

1879- वासुदेव बलवंत फड़के के रामोसी कृषक दल द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों का शुभारम्भ।1890 से- बालगंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र के लोगों में स्वराज्य के प्रति आस्था जगाने तथा क्रांतिकारी आतंकवादियों को युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाने हेतु शिवाजी महोत्सव एवं गणेश महोत्सव प्रारंभ किए, उन्होंने अपने पत्रों मराठा तथाकेसरी के द्वारा भी क्रांतिकारी आतंकवाद को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।1897- पूना में प्लेग समिति के प्रधान श्री रैण्ड एवं लैफ्टिनेंट एयसर्ट की चापकर बंधुओं द्वारा हत्या।1899- विनायक दामोदर सावरकर एवं उनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर द्वारा एक गुप्त सभा ‘मित्र मेला’ की स्थापना। 1904- मित्र मेला का ‘अभिनव भारत’ में विलय।1909- अभिनव भारत के एक सदस्य अनन्त कान्हेर द्वारा नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या।

पंजाब

पंजाब में क्रांतिकारी आतंकवाद को प्रोत्साहित करने में लाला लाजपत राय, अजीत अम्बा प्रसाद की मुख्य भूमिका रही।

विदेशों में क्रांतिकारी आतंकवाद

इंग्लैंड

श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, मदनलाल धींगरा एवं लाला हरदयाल की मुख्य भूमिका।1905- श्यामाजी कृष्ण वर्मा द्वारा ‘इण्डिया हाउस’ की स्थापना।इण्डिया हाउस से एक समाचार पत्र सोशियोलाजित्ट का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया।इण्डिया हाउस में ही सावरकर ने ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।1909- मदनलाल ढींगरा ने कर्नल विलियम कर्जन वाइली की गोली मारकर हत्या कर दी।

फ्रांस

आर.एस. राणा एवं श्रीमति भीकाजी रूस्तम कामा ने पेरिस से क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखने का प्रयास किया। यहां से बंदेमातरम् नामक समाचार पत्र निकालने का प्रयास।

अमेरिका तथा कनाडा

लाला हरदयाल प्रमुख नेतृत्वकर्ता।1913 में सैन फ्रेंसिस्को ‘गदर दल’ की स्थापना।गदर नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन ।

जर्मनी

लाला हरदयाल के अमेरिका से जर्मनी पहुंचने पर क्रांतिकारी गतिविधियों में तेजी।वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय प्रमुख नेता।

मार्ले-मिन्टो सुधार (1909)

केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि।गैर-सरकारी निर्वाचित सदस्यों की संख्या अभी भी नामजद एवं बिना चुने हुये सदस्यों की संख्या से कम थी। मुसलमानों के लिये पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की व्यवस्था।निर्वाचित सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता था। इस प्रकार भारत में पहली बार चुनाव प्रणाली प्रारम्भ हुई।व्यवस्थापिका समाओं के अधिकारों में वृद्धि की गयी। सदस्यों को आर्थिक प्रस्तावों पर बहस करने, उनके विषयों में संशोधन प्रस्ताव रखने, कुछ विषयों पर मतदान करने, प्रश्न पूछने, साधारण प्रश्नों पर बहस करने तथा सार्वजनिक हित के प्रस्तावों को प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया।गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था।

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इन सुधारों के पीछे सरकार की मंशा थी कि राष्ट्रवादियों को आपस में विभाजित कर दिया जाये। नरमपंथियों एवं मुसलमानों को लालच देकर सरकार के पक्ष में कर लिया जाये।

विधान परिषद् के सदस्यों के उत्तरदायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित न करने के कारण अनेक भ्रांतियां उत्पन्न हो गयीं।

निर्वाचन की पद्धति बहुत ज्यादा अस्पष्ट थी।

मुसलमानों हेतु पृथक निर्वाचन प्रणाली प्रारम्भ करना कालान्तर में राष्ट्रीय एकता के लिये अत्यन्त घातक सिद्ध हुआ।

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियां

उत्तरी अमेरिका में लाला हरदयाल, रामचन्द्र, भावन सिंह, करतार सिंह सराबा, बरकत उल्ला एवं भाई परमानन्द द्वारा ‘गदर दल’ का गठन।

गदर-दल के कार्यक्रम

सरकारी अधिकारियों की हत्या।क्रांतिकारी साहित्य का प्रकाशन।विदेशों में पदस्थापित भारतीय सेना के मध्य कार्य करना तथा क्रांतिकारी गतिविधियों हेतु धन एकत्रित करना।ब्रिटेन के सभी उपनिवेशों (न केवल भारत) में एक-एक करके विद्रोह प्रारम्भ करना।प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होने तथा कामागाटा मारूप्रकरण (सितम्बर, 1914)से गदर दल की गतिविधियां और तेज हो गयीं। 21 फरवरी, 1915 को गदर दल के कार्यकर्ताओं ने फिरोजपुर, लाहौर और रावलपिंदी में सशस्त्र विद्रोह की योजना बनायी किन्तु विश्वासघात के कारण यह योजना असफल हो गयी।

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गदर दल के कार्यकर्ताओं को दण्डित करने के लिये सरकार ने 1915 में भारत रक्षा अधिनियम बनाया।

यूरोप में वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय एवं उनके सहयोगियों ने ‘बर्लिन कमेटी फॉर इंडियन इंडिपेंडेंस’ की स्थापना की।

यूरोप स्थित भारतीय क्रांतिकारी आतंकवादियों ने विश्व के कई भागों यथा-बगदाद, ईरान, तुर्की एवं काबुल में विभिन्न क्रांतिकारी मिशन भेजे।

सिंगापुर में 15 फरवरी 1915 को पंजाबी मुसलमानों की पांचवी लाईट इन्फॅट्री तथा 36वीं सिख बटालियन के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह को बेरहमी से कुचल दिया गया।

सितम्बर 1915 में उड़ीसा तट पर स्थित बालासोर नामक स्थान पर बाधा जतिन पुलिस मुठभेड़ में शहीद हो गये।

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होमरूल लीग आंदोलन

होमरूल लीग आंदोलन, प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् उत्पन्न हुई परिस्थितियों में एक प्रभावशाली प्रतिक्रिया के रूप में प्रारम्भ हुआ। आयरलैंड के होमरूल लीग की तर्ज पर इसे भारत में एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने प्रारम्भ किया।

आंदोलन के प्रारम्भ होने में सहायक कारक

राष्ट्रवादियों के एक वर्ग का यह विश्वास कि सरकार का ध्यान आकर्षित करने हेतु उस पर दबाव डालना आवश्यक है।मार्ले-मिंटो सुधारों से मोहभंग होना।युद्धोपरांत भारतीयों पर आरोपित आर्थिक बोझ से त्रस्त भारतीय किसी भी आंदोलन में भाग लेने हेतु तत्पर थे।बालगंगाधर तिलक एवं एनी बेसेंट ने तत्कालीन परिस्थितियों में योग्य नेतृत्व प्रदान किया।प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन की साम्राज्यवादी मंशा का उजागर होना।

आंदोलन का उद्देश्य

होमरूल’ या ‘स्वशासन की अवधारणा से भारतीयों को परिचित कराना।

तिलक की होमरूल लीग

तिलक ने अप्रैल 1916 में इसकी स्थापना की। इसकी शाखायें महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांत एवं बरार में खोली गयीं। इसे 6 शाखाओं में संगठित किया गया।

एनी बेसेंट की होमरूल लीग

एनी बेसेंट ने सितम्बर 1916 में मद्रास में इसकी स्थापना की। शेष भारत में इसकी लगभग 200 शाखायें खोली गयीं।

कालान्तर में कई अन्य नेता होमरूल लीग आंदोलन से जुड़ गये, जिनमें नरमपंथी कांग्रेसी भी थे।

आंदोलन की विधियां

जनसभाओं का आयोजन, परिचर्चा आयोजित करना, पुस्तकालय एवं अध्ययन कक्षों की स्थापना, सम्मेलनों का आयोजन, विद्यार्थियों की कक्षाएं आयोजित करना, समाचार पत्र, पैम्फलेट्स, पोस्टर, पोस्ट कार्ड एवं नाटकों के माध्यम से भारतीय जनमानस को होमरूल अर्थात् स्वशासन के वास्तविक अर्थो से परिचित कराना।

आंदोलन के प्रति सरकार वर्ग का रुख

दमनात्मक कार्यवाई, राजनीतिक सभाओं पर प्रतिबंध, तिलक एवं एनी बेसेंट पर मुकदमा, राजनैतिक गिरफ्तारियां इत्यादि।

आांदोलन की उपलब्धियां

भारतीयों में चेतना का प्रसार, देश एवं शहरों के बीच सांगठनिक सम्पर्क की स्थापना, जुझारु राष्ट्रवादियों की नयी पीढ़ी का निर्माण, उग्रवादियों एवं नरमपंथियों के मध्य पुर्नएकीकरण को प्रोत्साहन, जिसके फलस्वरूप 1916 के लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस के दोनों दलों में एकता का मार्ग प्रशस्त हुआ।

कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन 1916

उग्रवादी पुनः कांग्रेस में सम्मिलित।कांगेस एवं मुस्लिम लीग के मध्य समझौता।कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग का संयुक्त घोषणा-पत्र।कांग्रेस द्वारा मुस्लिम लीग की पृथक प्रतिनिधित्व की मांगे स्वीकार की गयीं।इसके भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में दूरगामी परिणाम हुये।

 

युद्धोपरांत उत्पन्न हुई आर्थिक कठिनाइयां।विश्वव्यापी साम्राज्यवाद से राष्ट्रवादियों का मोहभंग होना।रूसी क्रांति का प्रभाव।

मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार

प्रांतों में द्वैध शासन

प्रशासनिक कार्यों के संचालन हेतु दो सूचियां- आरक्षित एवं हस्तांतरित।आरक्षित सूची के अधीन सभी विषयों का संचालन कार्यकारिणी परिषद की सहायता से गवर्नर द्वाराहस्तांतरित सूची के अधीन सभी विषयों का संचालन व्यवस्थापिका सभा के मंत्रियों द्वारा।गवर्नर, गवर्नर-जनरल एवं भारत सचिव को सभी मसलों में हस्तक्षेप करने के असीमित अधिकार।मताधिकार में वृद्धि, शक्तियों में भी वृद्धि।गवर्नर-जनरल द्वारा 8 सदस्यीय कार्यकारिणी परिषद की सहायता से कार्यों का संचालन-जिसमें तीन भारतीय थे।प्रशासनिक हेतु दो सूचियां- केंद्रीय एवं प्रांतीय।द्विसदनीय केंद्रीय व्यवस्थापिका- केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा, निम्न सदन तथा राज्य परिषद, उच्च सदन।दोषद्वैध शासन व्यवस्था अत्यंत जटिल एवं अतार्किक थी।केंद्रीय कार्यकारिणी, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं थी।सीमित मताधिकार।

दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी की गतिविधियां (1893-1914)

नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन एवं इण्डियन आोपीनियन नामक पत्र का प्रकाशन।पंजीकरण प्रमाणपत्र के विरुद्ध सत्याग्रह।भारतियों के प्रवसन पर प्रतिबंध लगाये जाने के विरुद्ध सत्याग्रह।टाल्सटाय फार्म की स्थापना।पोल टेक्स तथा भारतीय विवाहों को अप्रमाणित करने के विरुद्ध अभियान।गांधीजी को आंदोलन के लिये जनता के शक्ति का अनुभव हुआ, उन्हें एक विशिष्ट राजनीतिक शैली, नेतृत्व के नये अंदाज और संघर्ष के नये तरीकों को विकसित करने का अवसर मिला।

भारत में गांधीजी की प्रारंभिक गतिविधियां

चम्पारन सत्याग्रह (1917) - प्रथम सविनय अवज्ञा।अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) – प्रथम भूख हड़ताल।खेड़ा सत्याग्रह (1918) - प्रथम असहयोग।रॉलेट सत्याग्रह (1918) - प्रथम जन-हड़ताल।

खिलाफत-असहयोग आंदोलन

तीन मांगें-

तुर्की के साथ सम्मानजनक व्यवहार।सरकार पंजाब में हुयी ज्यादतियों का निराकरण करे।स्वराज्य की स्थापना।

प्रयुक्त की गयीं तकनीकें

सरकारी शिक्षण संस्थाओं, सरकारी न्यायालयों, नगरपालिकाओं, सरकारी सेवाओं, शराब तथा विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं एवं पंचायतों की स्थापना एवं खादी के उपयोग को प्रोत्साहन, आंदोलन के द्वितीय चरण में कर-ना अदायगी कार्यक्रम ।

कांग्रेस का नागपुर अधिवेशन (दिसम्बर 1920): कांग्रेस ने संवैधानिक तरीके से स्वशासन प्राप्ति के अपने लक्ष्य के स्थान पर शांतिपूर्ण एवं न्यायोचित तरीके से स्वराज्य प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया।

चौरी-चौरा कांड (5 फरवरी1922)- क्रुद्ध भीड़ द्वारा हिंसक घटनायें-जिसके फलस्वरूप गांधीजी ने अपना आदोलन वापस ले लिया।

स्वराज्यवादी एवं अपरिवर्तनवादी

गांधी द्वारा आंदोलन वापस ले लिये जाने के पश्चात स्वराज्यवादी व्यवस्थापिकाओं में प्रवेश के पक्षधर थे। इनका मत था कि व्यवस्थापिकाओं में प्रवेश कर वे सरकारी मशीनरी को अवरुद्ध कर देंगे तथा भारतीय हितों की वकालत करेंगे। अपरिवर्तनकारी, संक्रमण काल में रचनात्मक कार्यक्रमों को चलाये जाने के पक्षधर थे।

1920 के दशक में नयी शक्तियों का अभ्युदय

मार्क्सवादी एवं समाजवादी विचारों का प्रसार।भारतीय युवा वर्ग का सक्रिय होना।मजदूर संघों का विकास ।कृषकों के प्रदर्शन ।जातीय आंदोलन।क्रांतिकारी आतंकवाद का समाजवाद की ओर झुकाव।

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन एवं हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियां-

स्थापना-1924काकोरी डकैती-1925पुनर्संगठित-1928सैन्डर्स की हत्या-1928केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट-1929वायसराय की ट्रेन को जलाने का प्रयास-1929पुलिस मुठभेड़ में चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु-1931भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी-1931

बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियां

कलकत्ता के पुलिस कमिश्नर की हत्या का प्रयास-1924सूर्यसेन के चटगांव विद्रोही संगठन द्वारा चटगांव डकैती-1930

साम्प्रदायिकता के विकास के कारण

सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन- उपनिवेशी शासन द्वारा रियायतों एवं संरक्षण की नीति का साम्प्रदायिकता के विकास हेतु ईधन के रूप में प्रयोग।अंग्रेजी शासकों की ‘फूट डालो और राज करो' की नीति।इतिह्रास लेखन का साम्प्रदायिक चरित्र।सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों का पार्श्व प्रभाव।उग्रराष्ट्रवाद का पार्श्व प्रभाव।बहुसंख्यक समुदाय की साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया।

साइमन कमीशन

साइमन कमीशन को वर्तमान सरकारी व्यवस्था, शिक्षा के प्रसार तथा प्रतिनिधि संस्थानों के अध्यनोपरांत यह रिपोर्ट देनी थी कि भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना कहां तक लाजिमी है तथा भारत इसके लिये कहां तक तैयार है। भारतीयों को कोई प्रतिनिधित्व न दिये जाने के कारण भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया।

नेहरू रिपोर्ट

भारतीय संविधान का मसविदा तैयार करने की दिशा में भारतीयों का प्रथम प्रयास।भारत की औपनिवेशिक स्वराज्य का दर्जा दिये जाने की मांग।पृथक निर्वाचन व्यवस्था का विरोध, अल्पसंख्यकों हेतु पृथक स्थान आरक्षित किये जाने का विरोध करते हुये संयुक्त निर्वाचन पद्धति की मांग।भाषायी आधार पर प्रांतों के गठन की मांग।19 मौलिक अधिकारों की मांग।केंद्र एवं प्रांतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की मांग।

कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन- दिसम्बर 1928

सरकार को डोमिनियन स्टेट्स की मांग को स्वीकार करने का एक वर्ष का अल्टीमेटम, मांग स्वीकार न किये जाने पर सविनय अवज्ञा आदोलन प्रारंभ करने की घोषणा।

कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन दिसम्बर- 1929

पूर्ण स्वराज्य को कांग्रेस ने अपना मुख्य लक्ष्य घोषित किया।कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आदोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया।26 जनवरी 1930 को पूरे राष्ट्र में प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।

दांडी मार्च - 12 मार्च-6 अप्रैल1930

बंगाल में नमक सत्याग्रह प्रारंभ

आंदोलन का प्रसार

पश्चिमोत्तर प्रांत में खुदाई खिदमतगार द्वारा सक्रिय आंदोलन।शोलापुर में कपड़ा मजदूरों की सक्रियता।धारासाणा में नमक सत्याग्रह।बिहार में चौकीदारी कर-ना अदा करने का अभियान।बंगाल में चौकीदारी कर एवं यूनियन बोर्ड कर के विरुद्ध अभियान।गुजरात में कर-ना अदायगी अभियान।कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रांत में वन कानूनों का उल्लंघन।असम में ‘कनिंघम सरकुलर' के विरुद्ध प्रदर्शन।उत्तर प्रदेश में कर-ना अदायगी अभियान।महिलाओं, छात्रों, मुसलमानों के कुछ वर्ग, व्यापारी-एवं छोटे व्यवसायियों दलितों, मजदूरों एवं किसानों की आंदोलन में सक्रिय भागेदारी।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन नवंबर 1930-जनवरी 1931

कांग्रेस ने भाग नहीं लिया।

गांधी-इरविन समझौता- मार्च 1931

कांग्रेस, सविनय अवज्ञा आदोलन वापस लेने तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने हेतु सहमत।

कांग्रेस का कराची अधिवेशन -मार्च 1931

गांधीजी और इरविन के मध्य हुये दिल्ली समझौते का अनुमोदन, अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर अधिवेशन में गतिरोध पैदा हो गया।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन -दिसम्बर 1931

ब्रिटेन के दक्षिणपंथी गुट द्वारा भारत को किसी तरह की रियासतें दिये जाने का विरोध।अल्पसंख्यकों को संरक्षण दिये जाने के प्रावधानों पर सम्मेलन में गतिरोधान दिसम्बर 1931 से अप्रैल 1934 तक सविनय अवज्ञा आदोलन का द्वितीय चरण।

साम्प्रदायिक निर्णय

दलित वर्ग के लोगों को प्रथक प्रतिनिधित्व।राष्ट्रवादियों ने महसूस किया कि यह व्यवस्था राष्ट्रीय एकता के लिये गंभीर खतरा है।गांधीजी का आमरण अनशन (सितम्बर 1932) तथा पूना समझौता ।

भारत सरकार अधिनियम1935

प्रस्तावित- एक अखिल भारतीय संघ, केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्थापिका, प्रांतीय स्वायत्तता, विधान हेतु 3 सूचियाँ- केन्द्रीय, प्रांतीय एवं, समवर्ती।केंद्र में प्रशासन हेतु विषयों का सुरक्षित एवं हस्तांतरित वर्ग में विभाजन।प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन।1937 के प्रारंभ में प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं हेतु चुनाव संपन्न। कांग्रेस द्वारा बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, मध्यभारत, बिहार, उड़ीसा एवं पश्चिमोत्तर प्रांत में मंत्रिमंडलों का गठन।अक्टूबर-1939 द्वितीय विश्व युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण कांग्रेस मत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दिये।

 

कांग्रेस युद्ध में ब्रिटेन को सहयोग करेगी यदि-

युद्धोपरांत भारत की स्वतंत्रता प्रदान कर दी जाये। तथाअतिशीघ्र, केंद्र में किसी प्रकार की वास्तविक एवं उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जाये।1 सितम्बर, 1939: द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ तथा ब्रिटेन ने भारत के युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा की।10-14 सितम्बर 1939: वर्धा में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में- गांधीजी ने ब्रिटेन को बिना शर्त युद्ध में समर्थन देने की घोषणा की।सुभाषचंद्र बोस और समाजवादियों ने तर्क दिया कि स्थिति का लाभ उठाकर उपनिवेशी शासन के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ किया जाये तथा उसे अपदस्थ करने की कोशिश की जाये।

जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध के साम्राज्यवादी स्वरूप को स्वीकार किया लेकिन वे युद्धरत ब्रिटेन की परेशानियों से लाभ उठाये जाने के पक्षधर नहीं थे। इसके साथ ही उन्होंने युद्ध में भारत की सहभागिता का भी विरोध किया। कांग्रेस कार्यकारिणी ने पारित प्रस्ताव में कहा-जब तब भारत की आजादी देने का वायदा नहीं किया जाता, भारत युद्ध में ब्रिटेन को सहयोग नहीं देगा; सरकार को शीघ्र ही युद्ध के उद्देश्यों को स्पष्ट करना चाहिए।

लिनलियगो की घोषणा (17 अक्टूबर, 1939)

ब्रिटेन के युद्ध का उद्देश्य भेदभावपूर्ण अतिक्रमण को रोकना है।1935 के भारत शासन अधिनियम में संशोधन के लिये सरकार शीघ्र ही भारत के राजनीतिक दलों, विभिन्न समुदायों तथा समूहों से विचार-विमर्श करेगी। आवश्यकता पड़ने पर परामर्श लेने के लिये सरकार एक परामर्श समिति का गठन भी करेगी।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

युद्ध में भारत का समर्थन नहीं।प्रांतीय कांग्रेस सरकारों द्वारा त्यागपत्र।लेकिन अभी (शीघ्र ही) कोई जन-आंदोलन प्रारंभ नहीं किया जायेगा।

मार्च 1940

मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान प्रस्ताव पारित किया गया।

अगस्त प्रस्ताव (अगस्त 1940)

भारत के लिये डोमिनियन स्टेट्स मुख्य लक्ष्य।युद्ध के पश्चात संविधान सभा गठित की जायेगी, जिसमें मुख्यतः भारतीय होंगे।भविष्य की किसी भी योजना के लिये अल्पसंख्यकों की सहमति आवश्यक है।कांग्रेस ने अगस्त प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।

अक्टूबर 1940

कांग्रेस ने व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ किया।लगभग 25 हजार सत्याग्रही जेल भेजे गये।

मार्च 1942

लगभग सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को विजित करते हुये जापानी सेनायें रंगून तक पहुंच गयीं।

क्रिप्स मिशन (मार्च 1942)

इसने प्रस्ताव किया कि-

डोमिनियन स्टेट्स के साथ भारतीय संघ की स्थापना; इसे राष्ट्रमंडल से पृथक होने का अधिकार होगा।युद्ध के पश्चात प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा संविधान सभा, के सदस्यों का चुनाव किया जायेगा; यह संविधान सभा, संविधान का प्रारूप तैयार करेगी। यदि कोई प्रांत, संघ में सम्मिलित होना न चाहे तो ब्रिटेन उससे पृथक से समझौता करेगा।इस दौरान भारत की सुरक्षा का दायित्व ब्रिटेन के हाथों में होगा। कांग्रेस ने निम्न प्रावधानों पर आपति की।डोमिनियन स्टेट्सप्रांतों को संघ से पृथकता का अधिकार।गवर्नर-जनरल की सर्वोच्चता बनाये रखने का प्रावधान।

मुस्लिम लीग ने निम्न प्रावधानों पर आपति की-

स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के निर्माण की बात का न होना।संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया।

भारत छोड़ो आंदोलन आन्दोलन क्यों प्रारंभ किया गया?

क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों में भारतीय मांगों को पूरा करने के लिये सरकारी इच्छाशक्ति का अभाव।युद्ध के समय उत्पन्न कठिनाइयों से उपजा जन-असंतोषब्रिटेन की अपराजेयता का भ्रम टूटना।संभावित जापानी आक्रमण के मद्देनजर, भारतीय नेताओं की जनता को तैयार करने की अभिलाषा।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक (बंबई-8 अगस्त, 1942)

बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।9 अगस्त, 1942 सभी प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिये गये।

मुख्य गतिविधियां

जनता विद्रोह एवं प्रदर्शन पर उतारू-मुख्यतः पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं मुख्यतः सरकारी भवनों एवं प्रतीकों पर आक्रमण।आंदोलनकारियों को समुचित नेतृत्व प्रदान करने के लिय कुछ नेताओं की भूमिगत गतिविधियां।बलिया (उ.प्र.), तामलुक (बंगाल) एवं सतारा (महाराष्ट्र) में समानांतर सरकारों का गठन।समाज के विभिन्न वर्ग, जिन्होंने आंदोलन में सक्रियता से भाग लियायुवा, महिलाऐं, श्रमिक, किसान, सरकारी सेवक, एवं साम्यवादी।फरवरी 1943: गांधी ने आमरण अनशन प्रारंभ किया।23 मार्च, 1943: पाकिस्तान दिवस मनाया गया।

सी. राजगोपालाचारी फार्मूला (मार्च 1944)

मुस्लिम लीग को तुरंत भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का समर्थन करना चाहिए तथा अंतरिम सरकार को सहयोग प्रदान करना चाहिये।युद्ध के उपरांत मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों को आत्म-निर्धारण का अधिकार प्रदान किया जाये।देश के विभाजन की स्थिति में रक्षा, वाणिज्य एवं दूरसंचार इत्यादि मुद्दों का संचालन एक ही केंद्र (Common Center) से किया जाये।जिन्ना ने फार्मूले को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे चाहते थे कि कांग्रेस द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार कर ले।

देसाई-लियाकत समझौता

केंद्रीय कार्यकारिणी में कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग दोनों का समान प्रतिनिधित्व हो।20 प्रतिशत स्थान अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षित किये जायें।

वैवेल योजना (शिमला सम्मेलन-जून 1945)

अपवादस्वरूप गवर्नर-जनरल एवं कमांडर-इन-चीफ को छोड़कर,गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी के सभी सदस्य भारतीय होंगे।परिषद में हिन्दू एवं मुसलमानों की संख्या बराबर रखी जायेगी।मुस्लिम लीग ने शर्त रखी कि परिषद के सभी मुसलमानों का मनोनयन वह खुद करेगी तथा उसने कार्यकारिणी परिषद में साम्प्रदायिक निषेधाधिकार की मांग की।कांग्रेस ने आरोप लगाया कि वैवेल योजना, उसे विशुद्ध सवर्ण हिन्दू दल घोषित करने का प्रयास है।

ब्रिटिश शासन के अंतिम दो वर्ष

दो मुख्य आधार

स्वतंत्रता एवं विभाजन के संबंध में कुटिल समझौते; सांप्रदायिकता एवं हिंसा से परिपूर्ण।तीव्र, उन्मादी जन-प्रतिक्रिया।जुलाई 1945: ब्रिटेन में श्रमिक दल का सत्ता में आना।अगस्त 1945: केंद्रीय एवं प्रांतीय विधानसभाओं के लिये चुनावों की घोषणा।सितम्बर 1945: युद्ध के उपरांत संविधान सभा गठित करने की घोषणा।

सरकारी रूख में परिवर्तन; इसका कारण था-

वैश्विक शक्ति समीकरण में परिवर्तन, ब्रिटेन अब विश्व की नंबर एक शक्ति नहीं रहा।श्रमिक दल का भारत से सहानुभूति प्रदर्शन।ब्रिटिश सैनिकों का पस्त होना एवं ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में पराभव।सम्पूर्ण एशिया में साम्राज्यवाद विरोधी लहर।ब्रिटिश नौकरशाही, कांग्रेस द्वारा पुनः नया आंदोलन करने की संभावना से भयाक्रांत।

कांग्रेस के लिये दो मुख्य चुनावी मुद्दे

1942 का सरकारी दमन।आजाद हिंद फौज के युद्धबंदियों के लिये जनता का दबाव।

आजाद हिंद फौज के संबंध में जन-प्रदर्शनः मुख्य बिंदु

अप्रत्याशित उत्साह एवं सशक्त भागेदारी।अप्रत्याशित भौगोलिक एवं सामाजिक प्रसार।सरकार के परम्परागत भक्त-सरकारी सेवक एवं निष्ठावान समूह भी आंदोलन के प्रभाव से अछूते नहीं रहे।दिनोंदिन यह मुद्दा भारत बनाम ब्रिटेन बनता गया।

तीन प्रमुख विद्रोह,

21 नवंबर, 1945 को कलकत्ता में, आजाद हिंद फौज के सैनिकों पर मुकद्दमा चलाये जाने को लेकर।11 फरवरी 1946 को पुनः कलकत्ता में, आजाद हिंद फौज के एक अधिकारी को सात वर्ष का कारावास दिये जाने के विरोध में।18 फरवरी, 1946 को बंबई में; भारतीय शाही सेना के नाविकों की हड़ताल के संबंध में।

कांग्रेस ने विद्रोह की रणनीति एवं समय की अनुपयुक्त मानते हुए, इनका समर्थन नहीं किया।

चुनाव परिणाम

कांग्रेस ने केंद्रीय व्यवस्थापिका की 102 सीटों मे से 57 सीटों पर विजय प्राप्त की। उसे मद्रास, बंबई, संयुक्त प्रांत, बिहार, मध्य प्रांत एवं उड़ीसा में पूर्ण बहुमत मिला, पंजाब में उसने यूनियनवादियों एवं अकालियों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनायी।मुस्लिम लीग ने केंद्रीय व्यवस्थापिका के 30 आरक्षित स्थानों पर विजय प्राप्त की- सिंध एवं बंगाल में उसे पूर्ण बहुमत मिला।

1946 के अंत तक अंग्रेजों की वापसी क्यों सुनिश्चित लगने लगी?

राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय राष्ट्रवादियों की उत्तरोत्तर सफलता।नौकरशाही एवं अंग्रेज राजभक्तों के मनोबल में ह्रास।आजाद हिंद फौज के युद्धबंदियों के प्रति सैनिकों का समर्थन तथा भारतीय शाही सेना के नाविकों का विद्रोह।समझौते एवं दमन की ब्रिटिश नीति का सीमाकरण।आंतरिक सरकारी शासन का असंभव हो जाना।

अब सरकारी नीति का मुख्य उद्देश्य

भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करके सम्मानजनक वापसी तथा साम्राज्यवादी शासन के पश्चात भारत-ब्रिटेन संबंधों को मधुर बनाये रखने की योजना।

कैबिनेट मिशन

प्रावधान

पाकिस्तान का प्रस्ताव अस्वीकृत।मौजूदा विधानसभाओं का तीन समूहों-क, ख एवं ग में समूहीकरण।संघ, प्रांतों एवं देसी रियासतों में तीन-स्तरीय कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका।प्रांतीय विधानसभायें, संविधान सभा के सदस्यों का चयन करेंगी।रक्षा, विदेशी मामले एवं संचार के लिये एक सामान्य केंद्र (Common Center) की व्यवस्था।प्रांतों को स्वायत्तता तथा अवशिष्ट शक्तियां।देशी रियासतें, उत्तराधिकारी सरकार या ब्रिटिश सरकार से समझौता करने हेतु स्वतन्त्र।भविष्य में प्रांतों को समूह या संघ में सम्मिलित होने की छूट।

इस बीच संविधान सभा द्वारा एक अंतरिम सरकार का गठन किया जायेगा।

व्याख्याः कांग्रेस ने तर्क दिया कि समूहीकरण वैकल्पिक था, जबकि लीग ने सोचा कि समूहीकरण अनिवार्य है। मिशन ने लीग के मसले को समर्थन देने का निश्चय किया।स्वीकार्यताः जून 1946 में लीग तथा कांग्रेस दोनों ने कैबिनेट मिशन योजना को स्वीकार कर लिया।आगे का विकासः जुलाई 1946: नेहरू के प्रेस वक्तव्य के पश्चात मुस्लिम लीग ने योजना से अपना समर्थन वापस ले लिया तथा 16 अगस्त, 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' मनाने की घोषणा की।सितम्बर, 1946: जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार ने शपथ ली।अक्टूबर, 1946: मुस्लिम लीग, अंतरिम सरकार में सम्मिलित लेकिन उसने अड़ियलवादी रवैया अपनाया।फरवरी 1947: कांग्रेस के सदस्यों ने मुस्लिम लीग के सदस्यों को अंतरिम सरकार से निष्कासित करने की मांग की, लीग ने संविधान सभा को भंग करने की मांग उठायी।

एटली की घोषणा (20 फरवरी, 1947)

30 जून, 1948 की अवधि तक सत्ता-हस्तांतरण कर दिया जायेगा, सत्ता हस्तांतरण या तो एक सामान्य केंद्र (Common Center) या कुछ क्षेत्रों में प्रांतीय सरकारों को किया जा सकता है।

माउंटबैटन योजना (3 जून, 1947)

पंजाब एवं बंगाल विधान सभायें विभाजन का निर्णय स्वयं करेंगी; सिंध भी अपना निर्णय स्वयं करेगा।उ.-प्र. सीमांत प्रांत तथा असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया जायेगा यदि विभाजन हुआ दो डोमिनयन बनाये जायेंगे, दोनों की अलग-अलग संविधान सभायें होंगी।15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता दे दी गयी।18 जुलाई, 1947 ब्रिटिश संसद ने “भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947" पारित किया; 15 अगस्त, 1947 से इसे क्रियान्वित किया गया।

शक्तियां तथा कारक, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश किया

ऐतिहासिक उद्देश्य का सिद्धांत।साम्राज्यवाद का पतन।दो महान शक्तियों का उदय।इंग्लैंड में श्रमिक दल का उदय।भारतीय राष्ट्रवाद को रोकने में अंग्रेजों की विफलता।विस्फोटक परिस्थितियां तथा कानून व्यवस्था की स्थिति।भारतीय नौसेना का विद्रोह।वामपंथ का उभरना।द्वि-विकल्प सिद्धांत।राष्ट्रमंडल का विकल्प।1857 के पश्चात स्थिति में परिवर्तन

 

1857 के विद्रोह का आघात।नयी साम्राज्यवादी शक्तियों का उदय; विश्व अर्थव्यवस्था में ब्रिटिश सर्वोच्चता को चुनौती।भारत में बड़ी मात्रा में ब्रिटिश पूंजी का निवेश।केंद्र में परिवर्तन

 

भारत में शासन का अधिकार कंपनी से ब्रिटिश ताज ने अपने हाथों में लिया; भारत सचिव इस कार्य का केंद्र बिंदु।वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में भारतीयों को नियुक्त करने से, भारतीयों की व्यवस्थापिका से जुड़ने की प्रक्रिया प्रारंभ हुयी लेकिन उनके अधिकार बहुत सीमित थे।प्रांतीय प्रशासन में परिवर्तन

 

1870 में केंद्रीय एवं प्रांतीय वित्त को विभाजित करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया का शुभारभ।अधूरे मन से एवं अपर्याप्त प्रशासकीय कदम उठाये गये, जिनका मुख्य उद्देश्य सरकारी राजस्व में वृद्धि करना था।स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में परिवर्तन

 

1860 में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया का शुभारंभ।1882 में रिपन का प्रस्ताव, एक सकारात्मक कदम।वास्तविक शक्तियों एवं वित्तीय नियंत्रण का अधिकार नहीं।सेना में परिवर्तन

 

यूरोपियन शाखा की सर्वोच्चता सुनिश्चित की गयी।सेना में भारतियों को संतुलित करने के लिये संतुलन एवं प्रतितुलन की नीति अपनायी गयी।महत्वपूर्ण पदों एवं शाखाओं में भारतीयों को न नियुक्त करने का निर्णयसेना का उपयोग, ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा तथा उसके विस्तार के लिये किये जाने का निर्णय।ब्रिटेन के वाणिज्यिक हितों को पोषित करने के लिये भी सेना का उपयोग किये जाने का फैसला।लोक सेवायें

 

भारतीयों के लिये प्रवेश अत्यंत कठिन बना दिया गया भारतीयों को अंग्रेजों के अधीन रखने का निर्णय ।प्रशासनिक नीतियां

 

बांटो एवं राज करो की नीति।शिक्षित भारतीयों के प्रति द्वेष।प्रतिक्रियावादी समूहों को राष्ट्रवादियों के विरुद्ध खड़ा करने का निर्णय।सामाजिक सुधारों से समर्थन वापस लेने का निर्णय।सामाजिक सेवाओं की उपेक्षा।अपर्याप्त तथा अधूरे मन से कुछ श्रमिक कानूनों का निर्माण।प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध।रंगभेद की नीति।विदेश नीति

 

ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा तथा उसके हितों के पक्षपोषण हेतु प्राकृतिक भौगोलिक सीमाओं की लांघने का निर्णय।अन्य यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों को दूर रखना।ब्रिटेन के आर्थिक व व्यापारिक हितों को प्रोत्साहित करना।

 

 

 

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