वित्तीय संघवाद में वित्त आयोग
1. वित्त आयोग
यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 280 के प्रावधानों के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा पांच वर्षों के लिए बनाया जाने वाला आयोग है। यह केंद्र सरकार के कुल कर संग्रह में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी के बारे में निर्णय लेता है। वर्तमान में 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल चल रहा है। इसके प्रमुख आरबीआई के भूतपूर्व गवर्नर श्री वाई. वी. रेड्डी हैं। 14वें वित्त आयोग की अवधि 2015 से 2020 है।
2. वित्त आयोग के कार्य
(i) केंद्र और राज्यों के बीच साझा किए जाने वाले करों से होने वाली शुद्ध आमदनी का वितरण और राज्यों को ऐसी आमदनी आवंटित करना।
(ii) केंद्र द्वारा राज्यों को अनुदान के भुगतान को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत बनाना।
(iii) केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों से संबंधित कोई अन्य मामला।
इसलिए इसका मुख्य कार्य केंद्र सरकार को उसके द्वारा लगाए गए करों को राज्यों के साथ कैसे साझा किया जाए, पर अपनी राय देना है। ये अनुशंसाएं पांच वर्षों की अवधि को कवर करती हैं। द्वारा केंद्र भारत के संचित निधि में से राज्यों को कैसे अनुदान देना चाहिए, के बारे में भी आयोग नियम बनाता है। साथ ही आयोग को राज्यों के संसाधनों को बढ़ाने हेतु उपाय और पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों के पूरक हेतु उपाय सुझाना होता है।
3. 14वें वित्त आयोग की प्रमुख अनुशंसाएं
» केंद्र के विभाज्य कर पूल में राज्यों की हिस्सेदारी को वर्तमान के 32% से बढ़ाकर 42% करना।
» 2016–17 तक राजकोषीय घाटे को कम कर जीडीपी के 3% तक लाना और 2019–20 तक राजस्व घाटे को शून्य करना।
» बजट प्रस्तावों के राजकोष नीति कार्यान्वयन के मूल्यांकन के लिए स्वतंत्र राजकोष परिषद की स्थापना करना।
» मौजूदा FRBM अधिनियम के स्थान पर ऋण सीमा और राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून लाना।
» कर हस्तांतरण उद्देश्यों के लिए विशेष और सामान्य श्रेणी के राज्यों के बीच मतभेद को समाप्त करें लेकिन राजस्व के घाटे वाले 11 राज्यों को अनुदान दें।
» राज्य सरकारों के राजस्व व्यय में नियोजित और गैर – नियोजित भेदभाव को दूर करें।
» जीएसटी के लागू होने के बाद यदि राजस्व में घाटा होता है तो तीन वर्षों तक राज्यों को पूर्ण (100%) क्षतिपूर्ति करें।
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