Sunday, 13 October 2019

कृषि और ग्रामीण विकास के लिए नीतियां

कृषि और ग्रामीण विकास के लिए नीतियां


1. तकनीकी उपाय


जनसंख्या की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने के उपायों की शुरूआत की गई और औद्योगिक विकास के लिए भी एक आधार प्रदान किया गया। इसमें खेती की उत्पादकता में वृद्धि करने वाले व्यापक और गहन दोनों उपाय शामिल हैं। किसानों के लिए, सिंचाई सुविधाएं प्रदान की गईं जिससे वे बड़े पैमाने पर कृषि अयोग्य भूमि को कृषि के लिए तैयार कर सकें। बाद में, 1966 में नई कृषि नीति को देश के चुने हुए क्षेत्रों में एक पैकेज कार्यक्रम के रूप में पेश किया गया। इस कार्यक्रम को चालू रखने तथा बड़े पैमाने पर एक विस्तृत भूभाग में इसका विस्तार करने, उच्च गुणवत्ता के बीज (उत्पादकता में वृद्धि लाने के) लिए कई कदम उठाए गए। अर्थव्यवस्था के भीतर उर्वरकों और कीटनाशकों तथा जरूरत के अनुसार घरेलू उत्पादन में आयात आवश्यक है। खाद्यान्न उत्पादन जो कि 1950-51 में केवल 50.8 मिलियन टन था वह 2011-12 में 252.6 मिलियन टन पहुंच गया है।


2. भूमि सुधार


मध्यस्थों को समाप्त करने के लिए देश में भूमि सुधार उपाय शुरू किए गए थे। इसके तहत निम्न कदमों को उठाया गया: (i) बिचौलियों का खात्मा (ii) (क) किरायदारों द्वारा जमींदारों को भुगतान किए जाने वाले किराए के लिए काश्तकारी सुधार (ख) किरायेदारों के कार्यकाल की सुरक्षा, और (ग) किरायेदारों को स्वामित्व का अधिकार प्रदान करना, और (iii) भूमिहीन मजदूरों और सीमांत किसानों के बीच वितरण के लिए भूमि की खरीद हेतु जुताई योग्य भूमि का अधिरोपण।


3. चकबंदी व्यवस्था को लागू करना


कृषि और उपखंड तथा स्वामित्व वाली भूमि के विखंडन को रोकने के लिए चकबंदी व्यवस्था को लागू किया गया। भारतीय कृषि नीति ने सहयोग और जोत के समेकन के कार्यक्रमों की शुरूआत की। बाद में कार्यक्रमों का लक्ष्य उन जगहों पर केंद्रित किया जहां गांव में एक किसान की अपनी जमीन विभिन्न स्थानों पर है और उसे एक ही जगह पर उसकी पूरी जमीन के बराबर या उसकी जमीन कीमत के अनुसार जमीन प्रदान की गई।


4. योजना बनाने में लोगों की भागीदारी सुनिश्चत करने के लिए संस्थानों की भागीदारी


छोटे और सीमांत किसानों को संयुक्त खेती करने के लिए एक साथ लाना कहानी का केवल आधा भाग है। इसे ध्यान में रखते हुए 1952 में देश में सामुदायिक विकास कार्यक्रम शुरू किया गया। नियोजन प्रक्रिया में आम जनता की भागीदारी (और राजनीतिक निर्णय लेने) को प्रोत्साहित किया गया। एक अन्य कार्यक्रम लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का कार्यक्रम था, जिसे अक्सर पंचायती राज के रूप में जाना जाता था।


5. संस्थागत ऋण 


किसानों को संस्थागत ऋण सुविधाएं प्रदान करने के विस्तार करने हेतु सन 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की भी स्थापना की गई थी। इसके परिणाम के रूप में, उन साहूकारों का वर्चस्व तेजी से घटता गया जो किसानों का शोषण करते थे। वर्तमान में कृषि ऋण वितरण 2015-16 में 8.5 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है।


6. खरीद और समर्थन मूल्य


किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करना ताकि वे अधिक से अधिक फसलों को उगाने के लिए प्रेरित हो सकें।


7. कृषि पर इनपुट सब्सिडी 


सरकार किसानों को सिंचाई, उर्वरक और बिजली जैसे कृषि आदानों पर भारी सब्सिडी प्रदान करती है।


8. खाद्य सुरक्षा प्रणाली


उपभोक्ताओं को सस्ते और रियायती दरों पर खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुओं को प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने योजना अवधि के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के रूप में एक विस्तृत खाद्य सुरक्षा प्रणाली का निर्माण किया।


9. ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम


सरकार ने चौथी पंचवर्षीय योजना के बाद से कई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की शुरूआत की । उदाहरण स्वरूप लघु कृषक विकास एजेंसी (SFDA), सीमांत किसान और कृषि श्रम विकास एजेंसी (MFAL), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP),ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम (RLEGP), जवाहर रोजगार योजना (JRY), जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (JGSY), संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एसजीआरवाई), राष्ट्रीय कार्य खाद्य कार्यक्रम (NFFWP), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA), आदि।


10. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना


राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शुरूआत 2007-08 में की गई थी जिसका बजट ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 25 हजार करोड़ रुपये था। इसका मुख्य लक्ष्य ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राज्यों को कृषि और संबंधित क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना था ताकि कृषि क्षेत्र में 4 फीसदी की विकास दर हासिल की जा सके।


11. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) 


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन भारत सरकार की एक फसल विकास योजना है जिसका लक्ष्य मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करना और वर्ष 2011-12 के अंत तक क्रमश: चावल, गेहूं और दालों का 10, 8 और 2 लाख टन अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त करना है। इस योजना को 2007 में शुरू किया गया ता जिसका मंजूरी परिव्यय 2007-08 से 2011-12 तक की अवधि के लिए 4,883 करोड़ रूपये था। राज्य के औसत से नीचे गेहूं / चावल की उत्पादकता के साथ जिलों पर ध्यान केंद्रित करना मिशन का मुख्य लक्ष्य था।


12. कृषि मैक्रो मैनेजमेंट


कृषि मैक्रो मैनेजमेंट (एमएमए) एक केन्द्र प्रायोजित योजनाओं में से एक है, जिसकी स्थापना 2000-01 में की गई थी। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि केन्द्र से राज्यों को मिलने वाली सहायता सही तरीके से कृषि के विकास के लिए खर्च की जा सके। योजना को शुरू करने के साथ, इस योजना में 27 केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम शामिल है जो सहकारी फसल उत्पादन कार्यक्रम (चावल, गेहूं, मोटे अनाज, जूट, गन्ना और के लिए), जलग्रहण (वाटरशेड) विकास कार्यक्रम (वर्षा सिंचित क्षेत्रों, नदी घाटी परियोजनाओं / बाढ़ प्रवण नदियों के लिए राष्ट्रीय वाटरशेड विकास परियोजना), बागवानी उर्वरक, मशीनीकरण और बीज उत्पादन कार्यक्रमों से संबंधित है। वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) की शुरूआत के साथ, दस योजनाओं को बागवानी विकास से संबंधित योजना के दायरे से बाहर रखा गया है। वर्ष 2008-09 में कृषि योजना के मैक्रो मैनेजमेंट को संशोधित किया गया तांकि कृषि उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने की दिशा में कार्य हो सके।


 


 


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