मध्यकालीन इतिहास - बंगाल एवं अवध
मध्यकालीन इतिहास - बंगाल
मुर्शिद कुली खान:
1. मुर्शिद कुली खान को औरंगजेब ने नायब सुबेदार के तौर पर बंगाल दिवान के रूप में नियुक्त किया था और बाद में 1717 में फर्रुख सियर द्वारा सुबेदार के रूप में नियुक्त किया गया।
2. इन्होंने धीरे-धीरे स्वायत्तता ग्रहण की, हालांकि इन्होंने मुगल सम्राट को निरंतर उपहार अर्पित किए।
3. इसने खालिसा भूमि में जागीर भूमियों के बड़े हिस्सों के स्थानांतरण के माध्यम से वित्त का पुनर्गठन किया।
4. इसने राजस्व खेती व्यवस्था आरंभ की।
5. इसने किसानों को व्यक्तिगत उपयोग, कृषि में सुधार और अकाल की स्थिति में भू-राजस्व का भुगतान करने के लिए तक्कावी ऋण प्रदान किया।
6. उन्होंने मुस्लिमों और हिंदुओं को रोजगार के समान अवसर देकर प्रशासन को पुनर्गठित किया।
7. स्थानीय हिंदू जमींदारों और साहूकारों को राजस्व किसानों के रूप में नियुक्त करने की इसकी नीति ने बंगाल में एक नए उभरे अभिजात वर्ग के उदय और विकास का नेतृत्व किया।
8.इन्होंने विदेशी व्यापार कंपनियों की गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण रखा; ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों को 1691 और 1717 के मुगल फरमानों द्वारा कंपनी को दिए जाने वाले विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने से रोका। इन्होंने विद्रोही जमींदारों के विद्रोह को समाप्त करके प्रांत में कानून और व्यवस्था की स्थापना की।
अलीवर्दी खान
1. अलीवर्दी खान 1740 में सिंहासन के उत्तराधिकारी की हत्या के बाद सिंहासन पर बैठा।
2. इसने 2 करोड़ रुपये का भुगतान करके सम्राट मुहम्मद शाह से एक फर्मान प्राप्त करके अपनी हड़पता को वैध कर लिया।
3. इसके शासनकाल के दौरान बंगाल में मराठों की निरंतर घुसपैठ हुई।
4. इसने उड़ीसा के हिस्से से उनकी राजस्व की मांगों पर सहमत होते हुए शांति के बदले बंगाल के चौथ के रूप में 12 लाख रुपये का वार्षिक भुगतान करने के लिए सहमत हो गया।
5. इन्होंने अंग्रेजों की फार्म को उनके विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने तथा फ्रेंच को कलकत्ता और चंदननगर के उनके कारखानों को दृढ़ करने से प्रतिबंधित भी किया।
सिराजु-उद-दौला:
1. सिराज-उद-दौला सन् 1756 में सत्ता में आया।
2. सिराज-उद-दौला द्वारा कब्जा किए जाने के बाद कलकत्ता का नाम बदलकर अलीनगर कर दिया गया था।
3. इन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने का प्रयास किया।
4. इन्होंने कलकत्ता के ब्रिटिश गवर्नर को अतिरिक्त दुर्गों को ध्वस्त करने और इसके अलावा उनके खिलाफ गैर-कानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए पत्र लिखा।
5. ब्रिटिश ने इनके आदेशों का अनुपालन करने से इनकार कर दिया और फिर इन्होंने कासिमबाजार एवं उसके बाद कलकत्ता के ब्रिटिश कारखानों को जब्त (सीज़) कर दिया।
6.सन् 1757 में रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने इनके लोगों पर हमला कर दिया। इस घटना ने नवाब को समझौता तथा अंग्रेजों के साथ शांति स्थापित करने के लिए मजबूर कर दिया।
अलीनगर की संधि (1757)
संधि में निम्न बातें सम्मिलित थीं:
1. कंपनी द्वारा की गई मांगों की एक सूची।
2. यथास्थिति पर लौटने की पुष्टि करने वाला समझौता।
3. नवाब द्वारा जारी किए गए कईं फर्मान और दस्तक।
4. जब तक नवाब अपने समझौते का अनुपालन करेगा, अंग्रेज उसे समर्थन देना जारी रखेंगे।
5. कंपनी द्वारा पहले से धारित सभी व्यापार विशेषाधिकारों के उपयोग करने की पुष्टि।
6. इसके अतिरिक्त, अंग्रेजों को संभावित फ्रांसीसी हमले के खिलाफ कलकत्ता को मजबूत करने और उन्हें सिक्के जारी करने के लिए अधिकृत किया गया।
प्लासी का युद्ध (23 जून, 1757)
1. सन् 1757 में अंग्रेजों द्वारा चंदननगर पर विजय हासिल कर संधि का उल्लंघन किया गया।
2. सिराज-उद-दौला ने फ्रांसिसियों को सुरक्षा प्रदान करके विरोध किया।
3. ब्रिटिश ने षड़यंत्र के माध्यम से उन्हें हटाने का निर्णय किया।
4. 23 जून, 1757 को प्लासी का युद्ध हुआ। इस युद्ध में मीर जाफर और राय दुर्लभ का विश्वासघात देखा गया था तथा नवाब की सेना के छोटे बल की वीरता देखने को मिली। सिराज-उद-दौला की हत्या मीर जाफर के पुत्र द्वारा कर दी गई।
मीर जाफर (1757-60)
1. मुआवजे के रूप में 7 मिलियन रूपये का भुगतान करने के एवज में मीर जाफर ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में निशुल्क व्यापार करने का अधिकार एवं 24 परगना की ज़मींदारी सौंप दी।
2. उनकी अवधि में भारत से ब्रिटेन तक धन को ले जाने की शुरूआत देखी गई।
3. इन्होंने डच को अंग्रेजों का स्थान देने का प्रयास किया लेकिन डच को 1759 में बेदारा में अंग्रेजों द्वारा पराजित कर दिया गया।
मीर कासिम (1760-63)
1. इन्होंने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कईं राजस्व और सैन्य सुधार आरंभ किए।
2. इनकी अवधि में सार्वभौम सत्ता के लिए नवाब और अंग्रेजों के बीच संघर्ष की शुरूआत देखने को मिली।
3. इन्होंने अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मोंगेर स्थानांतरित कर दिया।
4. इन्होंने कंपनी को दी जाने वाली दस्तक या मुफ्त पासों के दुरुपयोग को रोक दिया और अंग्रेजों के खिलाफ गृह व्यापार पर सभी शुल्कों को समाप्त कर दिया।
बक्सर का युद्ध(1764)
मीर कासीम ने अपने तीन सहयोगियों अवध के शुजा-उद-दौला और शाह आलम II के साथ ब्रिटिशों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में मेजर हेक्टर मुनरो के अधीन ब्रिटिश सेनाओं द्वारा उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
मध्यकालीन इतिहास - अवध
शुजा-उद-दौला:
1. सन् 1754 में शुजा-उद-दौला ने अवध के सिंहासन पर बैठने के साथ-साथ मुगल साम्राज्य की वजीरदारी हासिल की।
2. इसने सन् 1764 में बक्सर के युद्ध में ब्रिटिशों के खिलाफ युद्ध किया लेकिन इलाहाबाद और कारा को सौंपना पड़ा। उन्हें अंग्रेजों को भारी क्षतिपूर्ति का भुगतान भी करना पड़ा।
3. लॉर्ड हेस्टिंग्स के अधीन उन्हें सन् 1773 में बनारस की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया।
4. इस संधि में, ब्रिटिश को अपनी सुरक्षा के लिए अवध में उनकी सेनाओं के लिए केन्द्र बनाने का अधिकार प्राप्त हो गया।
5. इन्होंने अंग्रेजों की सहायता से रोहिल्ला को हराया और सन् 1744 में रोहिल्लाकंद से अवध तक कब्जा कर लिया।
असफ-उद-दौला:
1. असफ-उद-दौला ने सन् 1775 में अंग्रेजों के साथ फ़ैज़ाबाद की संधि पर हस्ताक्षर किए। इस संधि के तहत वे अपने किसानों को शत्रुता के लिए प्रोत्साहित नहीं करेंगे।
2. नवाब मीर कासिम का सत्कार नहीं करेंगे।
3. नवाब ने सभी जिलों पर ब्रिटिश प्राधिकार दे दिया।
4. नवाब ब्रिटिश सेना के रख-रखाव हेतु प्रति माह 6 लाख का भुगतान करेगा।
वाजिद अली शाह:
लॉर्ड डलहौज़ी ने सन् 1856 में अवध पर कब्जा कर लिया और नवाब को पेंशन देकर कलकत्ता भेज दिया
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