Monday, 30 April 2018

Target IAS 2018 - सही रणनीति और लगन से सच करें सपने

Target IAS 2018 - सही रणनीति और लगन से सच करें सपने

भले ही आज हमारे देश में कॅरियर ऑप्शन के रूप में युवाओं के पास कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठा आज भी उतनी ही बरकरार है जैसी पहले थी, देश में लाखों युवा हर साल सिविल सर्विस के अपने सपने को साकार करने के लिए परीक्षा में शामिल होते हैं लेकिन कहते हैं कि सफलता उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान और हौसलों में उड़ान होती है। देश की इस प्रतिष्ठित परीक्षा में सफलता के लिए किस तरह से युवा अपनी नीतियां बनाकर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। सिविल सेवा जितनी आकर्षक है, इस परीक्षा में सफल होना उतना ही चुनौतीपूर्ण है। देश भर से सुयोग्य व महत्वाकांक्षी युवा इस परीक्षा में बैठते हैं, परन्तु सफलता कुछ लोगों के हाथ ही लगती है। अभ्यार्थियों की विशाल संख्या इस प्रतियोगिता को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाती है तथा योग्यतम का चुनाव करती है। यह परीक्षा कुछ इस प्रकार है कि इसमें वही अभ्यार्थी सफल हो पाते हैं जो सुनिश्चित रणनीति तथा योजना बना कर चलते हैं। इसीलिए आवश्यक है कि अभ्यार्थी सर्वप्रथम एक सटीक रणनीति का निर्माण करें तथा उस रणनीति के अनुरूप तैयारी को दिशा दें।

 

अचूक रणनीति से आसान होगा लक्ष्य

किसी भी महत्वपूर्ण कार्य की तरह सिविल सेवा में भी सफलता की प्राप्ति इस बात पर निर्भर करती है कि सफलता प्राप्ति के लिये किस प्रकार की रणनीति बनाई गई है। एक अच्छी रणनीति अच्छे प्रारम्भ का द्योतक है तथा कहा भी गया है कि अचूक रणनीति के निर्माण एवं गंभीरतापूर्वक उसके अनुपालन द्वारा सिविल सेवा परीक्षा में सफलता पाने की सम्भावना पर्याप्त रूप से बढ़ जाती है।

 

वक्त के साथ रणनीति बदलने की जरूरत

सिविल सेवा परीक्षा हेतु अच्छी रणनीति वह है जो परीक्षा की प्रकृति को ध्यान में रखकर बनाई गयी हो तथा साथ ही साथ अभ्यर्थी के सकारात्मक व नकारात्मक पक्षों को भी पर्याप्त महत्व दे। रणनीति तभी अचूक कही जाएगी जब उसमें तैयारी के प्रत्येक आयाम को स्थान दिया जाए। इसके अंतर्गत लक्ष्य निर्धारण से लेकर, विषयों के चुनाव, अध्ययन सामग्री के चयन, समय प्रबंधन के महत्व, प्रभावी अध्ययन पद्धति अपनाने, उपयोगी नोट्स के निर्माण, कोचिंग संस्था का चयन, परिचर्चा को प्रभावशाली बनाने, मोक टेस्ट, पुनरावलोकन आदि सभी को उचित महत्व देना चाहिए। सिविल सर्विस क्लब के समन्वयक लक्ष्मीशरण मिश्रा बताते हैं कि पिछले कुल सालों में सिविल सर्विस की परीक्षा के पैटर्न में काफी बदलाव आया है। सवाल पूछने का पैटर्न भी बोर्ड द्वारा इस प्रकार से तैयार किया जाता है जिसमें प्रतिभागी के ज्ञान को नहीं बल्कि उसकी समझ को देखने का प्रयास किया जाता है। आशय साफ है कि अब आप सिर्फ अपने नॉलेज के सहारे नहीं बल्कि अपनी समझ के सहयोग से ही सिविल सर्विस की परीक्षा को फाइट कर सकते हैं।

 

यह गुण तलाशने का प्रयास

सिविल सर्विस की परीक्षा के माध्यम से देश के लिए ऐसे युवाओं को खोजने का प्रयास नए पैटर्न के माध्यम से किया जा रहा है जो समस्याओं को समझकर तुरंत निर्णय लेकर काम कर सकें इसके लिए कुछ बुनियादी बातों का खास तौर पर मूल्यांकन किया जाता है।

 

1. बुनियादी ज्ञान हो - देश की इस सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा के माध्यम से चुने जाने वाले युवाओं से उम्मीद की जाती है कि उन्हें अपने देश की राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति से लेकर देश-विदेश के तत्कालीन घटनाक्रमों का बुनियादी ज्ञान अवश्य हो।

2. देश-दुनिया की हो समझ - किसी भी घटना को लेकर व्यक्ति पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है जिसमें देश-दुनिया, समाज के प्रति समझ क्या है उसे जानने का प्रयास किया जाता है, इसलिए समसामयिक मुद्दों और बेसिक नॉलेज दोनों का ही होना बहुत महत्वपूर्ण है।

3. प्रतिक्रियात्मक रवैया - सिविल सर्विस में आने के बाद व्यक्ति को हर स्तर पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में किसी भी घटना को लेकर उसकी क्या प्रतिक्रिया है। किसी भी मुद्दे पर उसके स्वयं के क्या विचार हैं। यह जानने का प्रयास किया जाता है, इसलिए समसामयिक मुद्दों पर अपने स्वयं के विचार प्रकट करने और लिखने की समझ विकसित करना जरूरी है।

4. विश्लेषण क्षमता है जरूरी - सिविल सर्विस में आने के बाद अधिकारी को समय परिस्थितियों के अनुसार तत्काल निर्णय लेना पड़ता है, इसलिए इस परीक्षा के माध्यम से व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता को जांचा जाता है। इसलिए अपनी डिसिजन मेकिंग की क्षमता को विकसित करें।

5. अभिव्यक्ति की हो क्षमता - सिविल सर्विस में आने वाले व्यक्ति की मौखिक और लिखित दोनों ही तरह की अभिव्यक्ति किसी भी मुद्दे पर स्पष्ट होनी चाहिए। ताकि वह किसी भी समस्या को पहले समझें फिर पूरे विश्लेषण के पश्चात उसका समाधान निकाल सकें, यही एक अच्छे प्रशासनिक अधिकारी के मुख्य गुण हैं।

 किन किताबों का अध्ययन होगा उचित

देश के सबसे ज्यादा जिम्मेदार युवाओं के चयन के लिए होने वाली इस सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा के लिए अध्ययन सामग्री की आज किताबों, नोट्स और इंटरनेट पर स्टडी मटेरियल की कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन हमें ऐसी किताबों का अध्ययन करने की आवश्यकता है जो हमें हमारी आवश्यकताओं के अनुरूप ज्ञान प्रदान करें।

कॉन्सेप्ट क्लीयर करें एनसीईआरटी बुक्स से -

अपने बेसिक क्लीयर करने के लिए प्रतिभागियों को सबसे पहले एनसीईआरटी की 8वीं से 12वीं क्लास की इतिहास, भूगोल, राजनीति शास्त्र, जीव विज्ञान, रसायन शास्त्र और भौतिक शास्त्र की किताबों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।

इन किताबों से विषय का सही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही कॉलेज में ग्रेजुएशन लेवल पर पढ़ाई जाने वाली किताबों का सही ढंग से अध्ययन करना आवश्यक है।

इतिहास - भारतीय स्वाधीनता आंदोलन विपिन चन्द्रा

बी.एल. ग्रोवर - आधुनिक भारत का इतिहास

भूगोल - भारत का भूगोल - बी.आर. खुल्लर, भारत एवं विश्व का भूगोल - प्रो. माजिद हुसैन।

भारतीय संविधान के लिए - हमारा संविधान - सुभाष कश्यप, डी.डी. बसु - भारत का संविधान।

भारतीय अर्थव्यवस्था - मिश्रा एवं पुरी, भारतीय अर्थव्यवस्था - दत्त एवं सुंदरम्।

सामान्य अध्ययन के लिए - नोट्स बनाने के बजाय समसामयिक मुद्दों पर अपने नोट्स बनाएं ।

प्रश्नमंच और निबंध प्रतियोगिता करेंगी मदद - यदि आपका लक्ष्य सिविल सर्विस में जाना है तो आप स्कूल लेवल पर हों या फिर कॉलेज लेवल पर क्विज कॉम्प्टीशन में हिस्सा लेने की आदत डालें, इस तरह की प्रश्नमंच प्रतियोगिताएँ आपके ज्ञान और आत्मविश्वास दोनों को बढ़ाएँगी। इसके साथ ही निबंध प्रतियोगिताओं के माध्यम से अपनी लेखन कला को समृद्ध बनाएं।

बेसिक क्लीयर करें और रेग्युलर स्टडी करें

रेग्युलर स्टडी के साथ ही बेसिक कॉन्सेप्ट क्लीयर कर सिविल सर्विस में सफलता प्राप्त की जा सकती है। न्यूज पेपर को रेग्युलर ध्यान से पढ़ने की आवश्यकता है राजनैतिक खबरों पर खास ध्यान न देकर सरकारी योजनाओं संबंधी खबरों, विज्ञान प्रौद्योगिकी, कला और साहित्य से जुड़ी खबरों, अंतर्राष्ट्रीय संबंध की खबरों को ध्यान से पढ़कर उन्हें नोट्स के रूप में नियमित सहेज कर रखें। इसके साथ ही कुरुक्षेत्र, योजना, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर मौजूद प्रेस समाचार का अध्ययन, इंडिया ईयर बुक का अध्ययन भी काफी मददगार होगा। इसके साथ ही सब्जेक्ट मटेरियल भी एक्सपर्ट की मदद लेकर सिलेक्टिव ही चूज करें इसमें इग्नू का स्टडी मटेरियल अच्छा ऑप्शन है। इन सबके साथ ही नियमित पढ़ाई बहुत जरूरी है क्योंकि सक्सेस का कोई शॉर्टकट नहीं होता है।

 

भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के सपने देखने वाले युवा अपनी सही रणनीति के माध्यम से अपने सपने को सच कर सकते हैं। इस परीक्षा से जुड़ी सभी जानकारी यू.पी.एस.सी. की वेबसाइट www.upsc.gov.in पर प्राप्त की जा सकती है।

 

दीजिये अपने जीवन को एक नयी शुरुआत .....
और लिख दीजिये मेहनत की कलम से सफलता की एक ऐसी इबारत की जो आपको एक नयी ऊंचाइयों पर ले जाये ......

  " गगन को झुका के धरा के चरणों पर धर सकता है
     इन्सान ठान ले तो फिर क्या नही कर सकता है. "

विराट कोहली खेल रत्न, द्रविड़ द्रोणाचार्य और गावस्कर ध्यानचंद पुरस्कार के लिये नामित

विराट कोहली खेल रत्न, द्रविड़ द्रोणाचार्य और गावस्कर ध्यानचंद पुरस्कार के लिये नामित

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) द्वारा राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली को राजीव गांधी खेल रत्न दिए जाने की सिफारिश की गई. इसके साथ ही बीसीसीआई द्वारा भारतीय ए टीम के कोच राहुल द्रविड़ को द्रोणाचार्य और पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर को ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के लिये नामित किया गया.

भारतीय क्रिकेट टीम के तीनों प्रारूपों के कप्तान विराट कोहली को सर्वोच्च खेल पुरस्कार खेल रत्न देने की सिफारिश की गई है. बीसीसीआई द्वारा खेल रत्न के लिये वर्ष 2016 में विराट के नाम की सिफारिश की गई थी लेकिन उस वर्ष ओलंपिक वर्ष होने के कारण विराट की जगह दीपा करमाकर, पीवी सिंधू, जीतू राय और साक्षी मलिक को खेल रत्न से नवाज़ा गया था.

वहीं गत वर्ष 2017 में पैरा एथलीट देवेंद्र झांझरिया और हॉकी खिलाड़ी सरदार सिंह को खेल रत्न दिया गया था.  बीसीसीआई ने इस वर्ष दोबारा से विराट को सर्वोच्च खेल पुरस्कार के लिये नामित किया है. 

ध्यानचंद पुरस्कार

ध्यानचंद पुरस्कार, भारत का सर्वोत्त्म खेल पुरस्कार है जो किसी खिलाडी के जीवन भर के कार्य को गौरवान्वित करता है. आधिकारिक रूप से इसका नाम खेलों में जीवनगौरव ध्यानचंद पुरस्कार है. इस पुरस्कार का नाम भारत के प्रसिद्ध मैदानी हॉकी के खिलाडी ध्यानचंद सिंह (1905-1981) के नाम पर रखा गया है. खेल एवं युवा मंत्रालय सन् 2002 से ये पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान करता है. प्राप्तकर्ताओं का चयन मंत्रालय द्वारा गठित एक समिति द्वारा किया जाता है और उनके सक्रिय खेल कार्यकाल के दौरान और सेवानिवृत्ति के बाद दोनों के लिए उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है. 2016 तक  इस पुरस्कार में एक प्रतिमा, प्रमाण पत्र, औपचारिक पोशाक और 5 लाख का नकद पुरस्कार शामिल है.

राजीव गांधी खेल रत्न

राजीव गांधी खेल रत्न भारत में दिया जाने वाला सबसे बड़ा खेल पुरस्कार है. इसकी शुरुआत 1991-92 में की गई थी. इस पुरस्कार को भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के नाम पर रखा गया है. इस पुरस्कार मे एक पदक, एक प्रशस्ति पत्र और 7.5 लाख रुपय पुरुस्कृत व्यक्ति को दिये जाते है. भारत सरकार द्वारा सम्मानित व्यक्तियों को रेलवे की मुफ्त पास सुविधा प्रदान की जाती है जिसके तहत राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार एवं ध्यानचंद पुरस्कार विजेता राजधानी या शताब्दी गाड़ियों में प्रथम और द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित कोचों में फ्री यात्रा कर सकते हैं. पहला राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार शतरंज ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद को दिया गया.

द्रोणाचार्य पुरस्कार

द्रोणाचार्य पुरस्कार, आधिकारिक तौर पर खेल और खेलों में उत्कृष्ट कोचों के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कार के रूप में जाना जाता है. यह पुरस्कार द्रोण के नाम पर रखा गया है, जिसे अक्सर “द्रोणाचार्य” या “गुरु द्रोण” कहा जाता है, जो कि प्राचीन भारत के संस्कृत महाकाव्य महाभारत का एक पात्र है. 1985 में स्थापित,यह पुरस्कार केवल ओलम्पिक खेलों, पैरालिंपिक खेलों, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, विश्व चैम्पियनशिप और विश्व कप और क्रिकेट, स्वदेशी खेलों में शामिल विषयों को दिया जाता है. इस पुरस्कार में द्रोणाचार्य का एक कांस्य प्रतिमा, एक प्रमाण पत्र, औपचारिक पोशाक, और 5 लाख रुपये का नकद पुरस्कार शामिल है.

 

 

उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए सहमत

उत्तर और दक्षिण कोरियाई नेताओं ने ऐतिहासिक शिखर बैठक के बाद विभाजित प्रायद्वीप में स्थायी शांति और पूर्ण निरस्त्रीकरण की दिशा में आगे बढ़ने का इरादा व्यक्त किया. दोनों देशों को विभाजित करने वाली सैन्य विभाजक रेखा पर प्रतीकात्मक रूप से हाथ मिलाने के 

साथ ही दोनों नेताओं ने पूर्ण निरस्त्रीकरण, परमाणु मुक्त कोरियाई प्रायद्वीप के साझा लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक घोषणा-पत्र भी जारी किया.

दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते वक्त दोनों नेताओं ने एक दूसरे को आभार व्यक्त किया. विश्व भर की मीडिया के सामने दोनों नेताओं ने शिखर वार्ता के समापन पर अपनी

मित्रता का प्रदर्शन किया. उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई इन ने इस बात पर भी सहमति जताई कि वे कोरियाई युद्ध के स्थायी समाधान की दिशा में इस साल प्रयास करेंगे और इसके सैन्य हल के बजाए शांतिपूर्ण संधि से इसे खत्म करने की दिशा में पहल की जाएगी. 

बैठक के मुख्य बिंदु

•    दोनों नेताओं ने कहा कि पतझड़ के मौसम में मून प्योंगयोंग का दौरा करेंगे. 

•    दोनों नेताओं ने ‘‘नियमित बैठकों और सीधे फोन वार्ता’’ करने पर भी सहमति जताई. 

•    इस तथाकथित पनमुंजोम घोषणा ने इस दिन को ऐतिहासिक बना दिया क्योंकि महज कुछ महीनों पहले तक इस पर कोई सोच भी नहीं सकता था जब उत्तर कोरिया लगातार मिसाइलों का परीक्षण कर रहा था और उसने अपना छठा परमाणु परीक्षण किया था. 

•      कोरिया युद्ध के लगभग 65 वर्ष बाद दक्षिण कोरिया की भूमि पर कदम रखने वाले किम पहले उत्तर कोरियाई शासक हैं. शिखर सम्मेलन के लिए पनमुंजम के युद्धविराम संधि के अधीन आने वाले गांव के दक्षिणी किनारे पर स्थित ‘ पीस हाउस बिल्डिंग ’ में दाखिल होने से पहले किम के आमंत्रण पर दोनों नेता एक साथ उत्तर कोरिया में दाखिल हुए 

पृष्ठभूमि

इससे पूर्व दोनों कोरिया देशों के बीच वर्ष 2000 और 2007 में प्योंगयोंग में शिखर सम्मेलन हुआ था और इसका समापन भी ऐसे ही सोहार्द्रपूर्ण रूप से हुआ था लेकिन इस दौरान हुये समझौतों का परिणाम बेहतर नहीं रहा.

 

 

Sunday, 29 April 2018

भारत का भूगोल

भारत का भूगोल

 

देश में वर्षा का वितरण

अधिक वर्षा वाले क्षेत्र- यहाँ वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 सेमी. से अधिक होता है। क्षेत्र- असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, कोंकण, मालाबार तट, दक्षिण कनारा, मणिपुर एवं मेघालय।

साधारण वर्षा वाले क्षेत्र- इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा की मात्रा 100 से 200 सेमी. तक होती है। क्षेत्र- पश्चिमी घाट का पूर्वोत्तर ढाल,  पं. बँगाल का दक्षिणी- पश्चिमी क्षेत्र, उड़ीसा, बिहार, दक्षिणी-पूर्वी उत्तर प्रदेश इत्यादि।

न्यून वर्षा वाले क्षेत्र- यहाँ 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है। क्षेत्र- मध्य प्रदेश, दक्षिण का पठारी भाग, गुजरात, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी पँजाब, हरियाणा तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश।

अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र- यहाँ वर्षा 50 सेमी. से भी कम होती है। क्षेत्र- कच्छ, पश्चिमी राजस्थान, लद्दाख आदि।

भूगर्भिक इतिहास
भारत की भूगर्भीय संरचना को कल्पों के आधार पर विभाजित किया गया है। प्रीकैम्ब्रियन कल्प के दौरान बनी कुडप्पा और विंध्य प्रणालियां पूर्वी व दक्षिणी राज्यों में फैली हुई हैं। इस कल्प के एक छोटे काल के दौरान पश्चिमी और मध्य भारत की भी भूगर्भिक संरचना तय हुई। पेलियोजोइक कल्प के कैम्ब्रियन, ऑर्डोविसियन, सिलुरियन और डेवोनियन शकों के दौरान पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में कश्मीर और हिमाचल प्रदेश का निर्माण हुआ। मेसोजोइक दक्कन ट्रैप की संरचनाओं को उत्तरी दक्कन के अधिकांश हिस्से में देखा जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र का निर्माण ज्वालामुखीय विस्फोटों की वजह से हुआ। कार्बोनिफेरस प्रणाली, पर्मियन प्रणाली और ट्रियाजिक प्रणाली को पश्चिमी हिमालय में देखा जा सकता है। जुरासिक शक के दौरान हुए निर्माण को पश्चिमी हिमालय और राजस्थान में देखा जा सकता है।
टर्शियरी युग के दौरान मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और हिमालियन पट्टिका में काफी नई संरचनाएं बनी। क्रेटेशियस प्रणाली को हम मध्य भारत की विंध्य पर्वत श्रृंखला व गंगा दोआब में देख सकते हैं। गोंडवाना प्रणाली को हम नर्मदा नदी के विंध्य व सतपुरा क्षेत्रों में देख सकते हैं। इयोसीन प्रणाली को हम पश्चिमी हिमालय और असम में देख सकते हैं। ओलिगोसीन संरचनाओं को हम कच्छ और असम में देख सकते हैं। इस कल्प के दौरान प्लीस्टोसीन प्रणाली का निर्माण ज्वालमुखियों के द्वारा हुआ। हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण इंडो-ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियाई प्लेटों के प्रसार व संकुचन से हुआ है। इन प्लेटों में लगातार प्रसार की वजह से हिमालय की ऊँचाई प्रतिवर्ष 1 सेमी. बढ़ रही है।

भारतीय प्लेट: भारत पूरी तरह से भारतीय प्लेट पर स्थित है। यह एक प्रमुख टेक्टोनिक प्लेट है जिसका निर्माण प्राचीन महाद्वीप गोंडवानालैंड के टूटने से हुआ है। लगभग 9 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तर क्रेटेशियस शक के दौरान भारतीय प्लेट ने उत्तर की ओर लगभग 15 सेमी प्रति वर्ष की दर से गति करना आरंभ कर दिया। सेनोजोइक कल्प के इयोसीन शक के दौरान लगभग 5 से 5.5 करोड़ वर्ष पूर्व यह प्लेट एशिया से टकराई। 2007 में जर्मन भूगर्भशास्त्रियों ने बताया कि भारतीय प्लेट के इतने तेजी से गति करने का सबसे प्रमुख कारण इसका अन्य प्लेटों की अपेक्षा काफी पतला होना था। हाल के वर्र्षों में भारतीय प्लेट की गति लगभग 5 सेमी. प्रतिवर्ष है। इसकी तुलना में यूरेशियाई प्लेट की गति मात्र 2 सेमी प्रतिवर्ष ही है। इसी वजह से भारत को च्फास्टेस्ट कांटीनेंटज् की संज्ञा दी गई है।

 

जल राशि
भारत में लगभग 14,500 किमी. आंतरिक नौपरिवहन योग्य जलमार्ग हैं। देश में कुल 12 नदियां ऐसी हैं जिन्हें बड़ी नदियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इन नदियों का कुल अपवाह क्षेत्रफल 2,528,000 वर्ग किमी. है। भारत की सभी प्रमुख नदियां निम्नलिखित तीन क्षेत्रों से निकलती हैं-
1. हिमालय या काराकोरम श्रृंखला
2. मध्य भारत की विंध्य और सतपुरा श्रृंखला
3. पश्चिमी भारत में साह्यïद्री अथवा पश्चिमी घाट
हिमालय से निकलने वाली नदियों को यहां के ग्लेशियरों से जल प्राप्त होता है। इनकी खास बात यह है कि पूरे वर्ष इन नदियों में जल रहता है। अन्य दो नदी प्रणालियां पूरी तरह से मानसून पर ही निर्भर हैं और गर्मी के दौरान छोटी नदियां मात्र बन कर रह जाती हैं। हिमालय से पाकिस्तान बह कर जाने वाली नदियों में सिंधु, ब्यास, चिनाब, राबी, सतलुज और झेलम शामिल हैं।
गंगा-ब्रह्म्ïापुत्र प्रणाली का जल अपवाह क्षेत्र सबसे ज्यादा 1,100,000 वर्ग किमी. है। गंगा का उद्गम स्थल उत्तरांचल के गंगोत्री ग्लेशियर से है। यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। ब्रह्म्ïापुत्र नदी का उद्गम स्थल तिब्बत में है और अरुणाचल प्रदेश में यह भारत में प्रवेश करती है। यह पश्चिम की ओर बढ़ते हुए बांग्लादेश में गंगा से मिल जाती है।
पश्चिमी घाट दक्कन की सभी नदियों का स्रोत है। इसमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियां शामिल हैं। ये सभी नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। भारत की कुल 20 फीसदी जल अपवाह इन नदियों के द्वारा ही होता है।
भारत की मुख्य खाडिय़ों में कांबे की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी शामिल हैं। जल संधियों में पाल्क जलसंधि है जो भारत और श्रीलंका को अलग करती है, टेन डिग्री चैनल अंडमान को निकोबार द्वीपसमूह से अलग करता है और ऐट डिग्री चैनल लक्षद्वीप और अमिनदीवी द्वीपसमूह को मिनीकॉय द्वीप से अलग करता है। महत्वपूर्ण अंतरीपों में भारत की मुख्यभूमि के धुर दक्षिण भाग में स्थित कन्याकुमारी, इंदिरा प्वाइंट (भारत का धुर दक्षिण हिस्सा), रामा ब्रिज और प्वाइंट कालीमेरे शामिल हैं। अरब सागर भारत के पश्चिमी किनारे पर पड़ता है, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर भारत के क्रमश: पूर्वी और दक्षिणी भाग में स्थित हैं। छोटे सागरों में लक्षद्वीप सागर और निकोबार सागर शामिल हैं। भारत में चार प्रवाल भित्ति क्षेत्र हैं। ये चार क्षेत्र अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, मन्नार की खाड़ी, लक्षद्वीप और कच्छ की खाड़ी में स्थित हैं। महत्वपूर्ण झीलों में चिल्क झील (उड़ीसा में स्थित भारत की सबसे बड़ी साल्टवाटर झील), आंध्र प्रदेश की कोल्लेरू झील, मणिपुर की लोकतक झील, कश्मीर की डल झील, राजस्थान की सांभर झील और केरल की सस्थामकोट्टा झील शामिल हैं।

 

प्राकृतिक संसाधन
भारत के कुल अनुमानित पुनर्नवीनीकृत जल संसाधन 1,907.8 किमी.घन प्रति वर्ष हैं। भारत में प्रतिवर्ष 350 अरब घन मी. प्रयोग योग्य भूमि जल की उपलब्धता है। कुल 35 फीसदी भूमिजल संसाधनों का ही उपयोग किया जा रहा है। देश की प्रमुख नदियों व जल मार्र्गों से प्रतिवर्ष 4.4 करोड़ टन माल ढोया जाता है। भारत की 56 फीसदी भूमि खेती योग्य है और कृषि के लिए प्रयोग की जाती है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में 5.4 अरब बैरल कच्चे तेल के भंडार हैं। इनमें से अधिकांश बांबे हाई, अपर असम, कांबे, कृष्णा-गोदावरी और कावेरी बेसिन में स्थित हैं। आंध्र प्रदेश, गुजरात और उड़ीसा में लगभग 17 खरब घन फीट प्राकृतिक गैस के भंडार हैं। आंध्र प्रदेश में यूरेनियम के भंडार हैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा माइका उत्पादक देश है। बैराइट व क्रोमाइट उत्पादन के मामले में भारत का दूसरा स्थान है। कोयले के उत्पादन के मामले में भारत का दुनिया में तीसरा स्थान है, वहीं लौह अयस्क के उत्पादन के मामले में भारत का चौथा स्थान है। यह बॉक्साइट और कच्चे स्टील के उत्पादन के मामले में छठवें स्थान पर है और मैंगनीज अयस्क उत्पादन के मामले में सातवें स्थान पर है। अल्म्युनियम उत्पादन के मामले में इसका आठवां स्थान है। भारत में टाइटेनियम, हीरे और लाइमस्टोन के भी भंडार प्रचुर मात्रा में हैं। भारत में दुनिया के 24 फीसदी थोरियम भंडार मौजूद हैं।

 

नमभूमि
नमभूमि वह क्षेत्र है जो शुष्क और जलीय इलाके से लेकर कटिबंधीय मानसूनी इलाके में फैली होती है और यह वह क्षेत्र होता है जहां उथले पानी की सतह से भूमि ढकी रहती है। ये क्षेत्र बाढ़ नियंत्रण में प्रभावी हैं और तलछट कम करते हैं। भारत में ये कश्मीर से लेकर प्रायद्वीपीय भारत तक फैले हैं। अधिकांश नमभूमि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नदियों के संजाल से जुड़ी हुई हैं। भारत सरकार ने देश में संरक्षण के लिए कुल 71 नमभूमियों का चुनाव किया है। ये राष्ट्रीय पार्र्कों व विहारों के हिस्से हैं। कच्छ वन समूचे भारतीय समुद्री तट पर परिरक्षित मुहानों, ज्वारीय खाडिय़ों, पश्च जल क्षार दलदलों और दलदली मैदानों में पाई जाती हैं। देश में कच्छ क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल 4461 वर्ग किमी. है जो विश्व के कुल का 7 फीसदी है। भारत में  मुख्य रूप से कच्छ वन अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह, सुंदरबन डेल्टा, कच्छ की खाड़ी और महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टा पर स्थित हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के कुछ क्षेत्रों में भी कच्छ वन स्थित हैं।
सुंदरबन डेल्टा दुनिया का सबसे बड़ा कच्छ वन है। यह गंगा के मुहाने पर स्थित है और पं. बंगाल और बांग्लादेश में फैला हुआ है। यहां के रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त यहां विशिष्ट प्राणि जात पाये जाते हैं।

 

भारत की प्रमुख जनजातियां
भारत में जनजातीय समुदाय के लोगों की काफी बड़ी संख्या है और देश में 50 से भी अधिक प्रमुख जनजातीय समुदाय हैं। देश में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोग नेग्रीटो, ऑस्ट्रेलॉयड और मंगोलॉयड प्रजातियों से सम्बद्ध हैं। देश की प्रमुख जनजातियां निम्नलिखित हैं-

आंध्र प्रदेश: चेन्चू, कोचा, गुड़ावा, जटापा, कोंडा डोरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोंड, सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, येरुकुलास, भील, गोंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक।
असम व नगालैंड: बोडो, डिमसा गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नगा, अबोर, डाफला, मिशमिस, अपतनिस, सिंधो, अंगामी।

झारखण्ड: संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गोंड, हो, खरिया, खोंड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, मल पहाडिय़ा, सोरिया पहाडिय़ा, बिझिया, चेरू लोहरा, उरांव, खरवार, कोल, भील।

महाराष्ट्र: भील, गोंड, अगरिया, असुरा, भारिया, कोया, वर्ली, कोली, डुका बैगा, गडावास, कामर, खडिया, खोंडा,  कोल, कोलम, कोर्कू, कोरबा, मुंडा, उरांव, प्रधान, बघरी।

पश्चिम बंगाल: होस, कोरा, मुंडा, उरांव, भूमिज, संथाल, गेरो, लेप्चा, असुर, बैगा, बंजारा, भील, गोंड, बिरहोर, खोंड, कोरबा, लोहरा।

हिमाचल प्रदेश: गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा, पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।

मणिपुर: कुकी, अंगामी, मिजो, पुरुम, सीमा।

मेघालय: खासी, जयन्तिया, गारो।

त्रिपुरा: लुशाई, माग, हलम, खशिया, भूटिया, मुंडा, संथाल, भील, जमनिया, रियांग, उचाई।

कश्मीर: गुर्जर।

गुजरात: कथोड़ी, सिद्दीस, कोलघा, कोटवलिया, पाधर, टोडिय़ा, बदाली, पटेलिया।

उत्तर प्रदेश: बुक्सा, थारू, माहगीर, शोर्का, खरवार, थारू, राजी, जॉनसारी।

उत्तरांचल: भोटिया, जौनसारी, राजी।

केरल: कडार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर, मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायन, मन्नान, उल्लातन, यूराली, विशावन, अर्नादन, कहुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियियान,कुरुमान, पनियां, पुलायन, मल्लार, कुरुम्बा।

छत्तीसगढ़: कोरकू, भील, बैगा, गोंड, अगरिया, भारिया, कोरबा, कोल, उरांव, प्रधान, नगेशिया, हल्वा, भतरा, माडिया, सहरिया, कमार, कंवर।

तमिलनाडु: टोडा, कडार, इकला, कोटा, अडयान, अरनदान, कुट्टनायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर, कुरुम्बा, कुरुमान, मुथुवान, पनियां, थुलया, मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर,मन्नान, उरासिल, विशावन, ईरुला।

कर्नाटक: गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेनु, कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड, टोडा, वर्ली, चेन्चू, कोया, अनार्दन, येरवा, होलेया, कोरमा।

उड़ीसा: बैगा, बंजारा, बड़होर, चेंचू, गड़ाबा, गोंड, होस, जटायु, जुआंग, खरिया, कोल, खोंड, कोया, उरांव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।

पंजाब: गद्दी, स्वागंला, भोट।

राजस्थान:मीणा, भील, गरसिया, सहरिया, सांसी, दमोर, मेव, रावत, मेरात, कोली।

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह: औंगी आरबा, उत्तरी सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबारी, शोपन।

अरुणाचल प्रदेश: अबोर, अक्का, अपटामिस, बर्मास, डफला, गालोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभा मिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।

 

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